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रंगभूमि

विनय ने कहा—"ऐसा व्यसन क्यों करते हो कि एक दिन भी उसके बिना न रहद जाय? छोड़ो इसे, भले आदमी, व्यर्थ में प्राण दिये देते हो।"

नायकराम—'भैया, इस जनम में तो छूटती नहीं, आगे की दैव जाने। यहाँ तो मरते समय भी एक गोला सिरहाने रख लेंगे, वसीयत कर जायँगे कि एक सेर भंग हमारी चिता में डाल देना। कोई पानी देनेवाला तो है नहीं, लेकिन अगर कभी भगवान ने वह दिन दिखाया, तो लड़कों से कह जाऊँगा कि पिंड के साथ भंग का पिंडा भी जरूर देना। इसका मजा वही जानता है, जो इसका सेवन करता है।"

नायकराम को आज भोजने अच्छा न लगा, नींद न आई, देह टूटती रही। गुस्से में सरायवाले को खूब गालियाँ दी। मारने दौड़े। बनिये को डाँटा कि साफ शकर क्यों न दी। हलवाई से उलझ पड़े कि मिठाइयाँ क्यों खराब दी। देख तो, तेरी क्या गत बनाता हूँ। चलकर सीधे सरदार साहब से कहता हूँ। बच्चा! दूकान न लुटवा दूंँ, तो कहना। जानते हो, मेरा नाम नायकराम है। यहाँ तेल की गंध से घिन है। हलवाई पैरों पड़ने लगा; पर उन्होंने एक न सुनी। यहाँ तक कि धमकाकर उससे २५) वसूल किये! किंतु चलते समय विनय ने रुपये वापस करा दिये। हाँ, हलवाई को ताकीद कर दी कि ऐसी खराब मिठाइयाँ न बनाया करे और तेल की चीज के घी के दाम न लिया करे।

दूसरे दिन दोनों आदमी दस बजते-बजते उदयपुर पहुँच गये। पहला आदमी जो उन्हें दिखाई दिया, वह स्वयं सरदार साहब थे। वह टमटम पर बैठे हुए दरबार से आ रहे थे। विनय को देखते ही घोड़ा रोक दिया और पूछा—"आप कहाँ?"

विनय ने कहा-“यहीं तो आ रहा था।"

सरदार—"कोई मोटर न मिला? हाँ, न मिला होगा। तो टेलीफोन क्यों न कर दिया? यहाँ से सवारी भेज दी जाती। व्यर्थ इतना कष्ट उठाया।"

विनय—"मुझे पैदल चलने का अभ्यास है, विशेष कष्ट नहीं हुआ। मैं आज आप से मिलना चाहता हूँ, और एकांत में। आप कब मिल सकेंगे?'

सरदार—"आपके लिए समय निश्चित करने की जरूरत नहीं। जब जी चाहे, चले आइएगा, बल्कि वहीं ठहरिएगा भी।"

विनय—"अच्छी बात है।"

सरदार साहब ने घोड़े को चाबुक लगाया और चल दिये। यह न हो सका कि विनय को भी बिठा लेते, क्योंकि उनके साथ नायकराम को भी बैठाना पड़ता। विनय-सिंह ने एक ताँगा किया और थोड़ी देर में सरदार साहब के मकान पर जा पहुँचे।

सरदार साहब ने पूछा— "इधर कई दिनों से आपका कोई समाचार नहीं मिला। आपके साथ के और लोग कहाँ हैं। कुछ मिसेज क्लार्क का पता चला?"

विनय—“साथ के आदमी तो पीछे हैं; लेकिन मिसेज क्लार्क का कहीं पता न चला, सारा परिश्रम विफल हो गया। वीरपालसिंह की तो मैंने टोह लगा ली, उसका घर भी देख आया। पर मिसेज क्लार्क की खोज न मिली।"