इंदु से एकांत में मिलने का मौका मिल जाता, तो अच्छा होता। क्या करूँ, इंदु को बुला भेजूँ ? न जाने क्या करने लगी। प्यानो बजाऊँ, तो शायद सुनकर आये।
उधर इंदु भी सोफ़िया से कितनी ही बातें करना चाहती थी। रानीजी के सामने उसे दिल की बातें कहने का अवसर न मिला था। डर रही थी कि सोफिया के पिता उसे लेते गये, तो मैं फिर अकेली हो जाऊँगी। डॉक्टर गंगुली ने कहा था कि इन्हें ज्यादा बातें मत करने देना, आज और आराम से सो लें, तो फिर कोई चिंता न रहेगी। इसलिए वह आने का इरादा करके भी रह जाती थी। आखिर नौ बजते-बजते वह अधीर हो गई। आकर नौकरानी को अपना कमरा साफ करने के बहाने से हटा दिया, और सोफिया के सिरहाने बैठकर बोली-"क्यों बहन, बहुत कमजोरी तो नहीं मालूम होती?"
सोफिया—"बिलकुल नहीं। मुझे तो मालूम होता है कि मैं चंगी हो गई।"
इंदु—"तुम्हारे पापा कहीं तुम्हें अपने साथ ले गये, तो मेरे प्राण ही निकल जायँगे। तुम भी उनकी राह देख रही हो। उनके आते ही खुश होकर चली जाओगी, और शायद फिर कभी मेरी याद भी न करोगी।"
यह कहते-कहते इंदु की आँखें सजल हो गई। मनोभावों के अनुचित आवेश को हम बहुधा मुस्किराहट से छिपाते हैं। इंदु की आँखों में आँसू भरे हुए थे, पर वह मुस्किरा रही थी।
सोफ़िया बोली—"आप मुझे भूल सकती हैं, पर मैं आपको कैसे भूलूँगी?"
वह अपने दिल का दर्द सुनाने ही जा रही थी कि संकोच ने आकर जबान बन्द कर दी, बात फेरकर बोली-"मैं कभी-कभी आपसे मिलने आया करूँगी।"
इंदु—"मैं तुम्हें यहाँ से अभी पन्द्रह दिन तक न जाने दूँगी। धर्म बाधक न होता, तो कभी न जाने देती। अम्माँजी तुम्हें अपनी बहू बनाकर छोड़तीं। तुम्हारे ऊपर बेतरह रीझ गई हैं। जहाँ बैठती हैं, तुम्हारी ही चर्चा करती हैं। विनय भी तुम्हारे हाथों बिका हुआ-सा जान पड़ता है। तुम चली जाओगी, तो सबसे ज्यादा दुःख उसी को होगा। एक बात भेद की तुमसे कहती हूँ। अम्माँजो तुम्हें कोई चीज तोहफा समझकर दें, तो इनकार मत करना, नहीं तो उन्हें बहुत दुःख होगा।"
इस प्रेममय आग्रह ने संकोच का लंगर उखाड़ दिया। जो अपने घर में नित्य कटु शब्द सुनने की आदी हो, उसके लिए इतनी मधुर सहानुभूति काफी से ज्यादा थी। अब सोफ़ो को इंदु से अपने मनोभावों को गुप्त रखना मैत्री के नियमों के विरुद्ध प्रतीत हुआ। करुण स्वर में बोली-"इंदु, मेरा वश चलता, तो कभी रानी के चरणों को न छोड़ती, पर अपना क्या काबू है? यह स्नेह और कहाँ मिलेगा?"
इंदु या भाव न समझ सकी। अपनी स्वाभाविक सरलता से बोली—“कहीं विवाह को बातचीत हो रही है क्या?"
उसकी समझ में विवाह के सिवा लड़कियों के इतना दुखी होने का कोई कारण न था।