लायेगा? प्रभु, हम बूढ़ा हो गया, कल मर जायगा। तुम हमारा काम क्यों नहीं सँभा-लता? हमारा सेवक-दल तुम्हारा रेस्पेक्ट करता है। तुम हमें इस भार से मुक्त कर सकता है। बुड्ढा आदमी और सब कुछ कर सकता है, उत्साह तो उसके बस का बात नहीं! हम तुमको अब न छोड़ेगा। काउंसिल में इतना काम है कि हमको इस काम के लिए अवकाश ही नहीं मिलता। हम काउंसिल में न गया होता, तो उदयपुर में यह सब कुछ नहीं होने पाता। हम जाकर सबको शांत कर देता। तुम इतना विद्या पढ़कर उसको धन कमाने में लगायेगा, छि:-छिः!”
प्रभु सेवक- "मैं तो सेवकों में भरती होने के लिए घर से आया ही हूँ, पर मैं उसका नायक होने के योग्य नहीं हूँ। वह पद आप ही को शोभा देता है। मुझे सिपा-हियों ही में रहने दीजिए। मैं इसी को अपने लिए गौरव की बात समझूँगा।"
गंगुली-(हँसकर) "हः हः, काम तो अयोग्य ही लोग करता है। योग्य आदमी काम नहीं करता, वह बस बातें करता है। योग्य आदमी का आशय है बातूनी आदमी, खाली बात, बात, जो जितना ही बात करता है, उतना ही योग्य होता है। वह काम का ढंग बता देगा ; कहाँ कौन भूल हो गया, यह बता देगा; पर काम नहीं कर सकता। हम ऐसा योग्य आदमी नहीं चाहता। हमारे यहाँ बातें करने का काम नहीं है। हम तो ऐसा आदमी चाहता है, जो मोटा खाय, मोटा पहने, गली-गली, नगर-नगर दौड़े, गरीबों का उपकार करे, कठिनाइयों में उनका मदद करे। तो कब से आयेगा?"
प्रभु सेवक-"मैं तो अभी से हाजिर हूँ।"
गंगुली-(मुस्किराकर) "तो पहला लड़ाई तुमको अपने पापा से लड़ना पड़ेगा।"
प्रभु सेवक- "मैं समझता हूँ, पापा स्वयं इस प्रस्ताव को न उठायेंगे।" गंगुली-"नहीं-नहीं, वह कभी अपना बात नहीं छोड़ेगा। हमको उससे युद्ध करना पड़ेगा, तुमको उससे लड़ना पड़ेगा। हमारी संस्था न्याय को सर्वोपरि मानती है, न्याय हमको माता-पिता से, धन-दौलत से, नाम और जस से प्यारा है। हम और सब कुछ छोड़ देगा, न्याय को न छोड़ेगा, यही हमारा व्रत है। तुमको खूब सोच-विचारकर तब यहाँ आना होगा।"
प्रभु सेवक-"मैंने खूब सोच-विचार लिया है।"
गंगुली-“नहीं-नहीं, जल्दी नहीं है, खूब सोच-विचार लो, यह तो अच्छा नहीं होगा कि एक बार आकर तुम फिर भाग जाय।"
प्रभु सेवक—"अब मृत्यु ही मुझे इस संस्था से अलग कर सकती है।"
गंगुली—"मि० जॉन सेवक तुमसे कहेगा, हम न्याय-अन्याय के झगड़े में नहीं पड़ता, तुम हमारा बेटा है, हमारा आज्ञा-पालन करना तुम्हारा धर्म है, तो तुम क्या जवाब देगा? (हँसकर) मेरा बाप ऐसा कहता, तो मैं उससे कभी न कहता कि हम तुम्हारा बात न मानेगा। वह हमसे बोला, तुम बैरिस्टर हो जाय, हम इँगलैंड चला<ब्र>