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रंगभूमि


तुम्हारा नाम उछलाता फिरेगा। जरा दिल में सोचो, लोग क्या समझेंगे। शोक है! अगर इस वक्त मैं दीवार से सिर नहीं टकरा लेता, तो समझ लो कि बड़े धैर्य से काम ले रहा हूँ। तुम्हारे ह्मयों मुझे सदैव अपमान ही मिला, और तुम्हारा यह कार्य तो मेरे मुख पर कालिमा का वह चिह्न है, जो कभी मिट नहीं सकता।"

यह कहकर महेंद्रकुमार निराश होकर आरामकुर्सी पर लेट गये और छत की ओर ताकने लगे। उन्होंने दीवार से सिर न टकराने में चाहे असीम धैर्य से काम लिया या न लिया हो, पर इंदु ने अपने मनोभावों को दबाने में असीम धैर्य से जरूर काम लिया। जी में आता था कि कह दूँ, मैं आपकी गुलाम नहीं हूँ, मुझे यह बात संभव ही नहीं मालूम होती कि कोई ऐसा प्राणी भी हो सकता है, जिस पर ऐसी करुण अपील का कुछ असर ही न हो। मगर भय हुआ कि कहीं बात बढ़ न जाय। उसने चाहा कि कमरे से चली जाऊँ और निर्दय प्रारब्ध को, जिसने मेरी शांति में विघ्न डालने का ठेका-सा ले लिया है, पैरों-तले कुचल डालूँ और दिखा दूँ कि धैर्य और सहनशीलता से प्रारब्ध के कठोरतम आषातों का प्रतिकार किया जा सकता है, किंतु ज्यों ही वह द्वार की तरफ चली कि महेंद्रकुमार फिर तनकर बैठ गये और बोले-"जाती कहाँ हो, क्या मेरी सूरत से भी घणा हो गई? मैं तुमसे बहुत सफाई से पूछना चाहता हूँ कि तुम इतनी निरंकुशता से क्यों काम करती हो। मैं तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ कि जिन बातों का संबन्ध मुझसे हो, वे मुझसे पूछे बिना न की जाया करें-हाँ, अपनी निजी बातों में तुम स्वाधीन हो—मगर तुम्हारे ऊपर मेरी अनुनय-विनय का कोई असर क्यों नहीं होता? क्या तुमने कसम खा ली है कि मुझे बदनाम करके, मेरे सम्मान को धूल में मिलाकर, मेरी प्रतिष्ठा को पैरों से कुचलकर तभी दम लोगी?"

इंदु ने गिड़गिड़ाकर कहा—"ईश्वर के लिए इस वक्त मुझे कुछ कहने के लिए विवश न कीजिए। मुझसे भूल हुई या नहीं, इस पर मैं बहस नहीं करना चाहती। मैं माने लेती हूँ कि मुझसे भूल हुई और जरूर हुई। मैं उसका प्रायश्चित्त करने को तैयार हूँ। अगर अब भी आपका जी न भरा हो, तो लीलिए, बैठी जाती हूँ। आप जितनी देर तक और जो कुछ चाहें, कहें; मैं सिर न उठाऊँगी।"

मगर क्रोध अत्यंत कठोर होता है। वह देखना चाहता है कि मेरा एक-एक वाक्य निशाने पर बैठता है या नहीं, वह मौन को सहन नहीं कर सकता। उसकी शक्ति अपार है, ऐसा कोई घातक-से-घातक शस्त्र नहीं है, जिससे बढ़कर काट करनेवाले यंत्र उसकी शस्त्रशाला में न हों लेकिन मौन वह मंत्र है, जिसके आगे उसकी सारी शक्ति विफल हो जाती है। मौन उसके लिए अजेय है। महेंद्रकुमार चिढ़कर बोले-"इसका यह आशय है कि मुझे बकवास का रोग हो गया है और कभी-कभी उसका दौरा हो जाया करता है।

इंदु—"यह आप खुद कहते हैं।"

इंदु से भूल हुई कि वह अपने वचन को निभा न सकी। क्रोध को एक चाबुक