योरपीय महासमर में रंगरूट भरती करने में बड़ा उत्साह दिखाया था। भैरो को तरफ से एक वकील भी था।
भैरो का बयान हुआ। गवाहों का बयान हुआ। तब उसके वकील ने उनसे अपना पक्ष-समर्थन करने के लिए जिरह की।
तब सूरदास का बयान हुआ। उसने कहा—"मेरे साथ इधर कुछ दिनों से भैरो की घरवाली रहती है। मैं किसी को क्या खिलाऊँ-पिलाऊँगा, पालनेवाला भगवान् है। वह मेरे घर में रहती है, अगर भैरो उसे रखना चाहे और वह रहना चाहे, तो आज चली जाय, यही तो मैं चाहता हूँ। इसीलिए मैंने उसे अपने यहाँ रखा है, नहीं तो न जाने कहाँ होती।"
भैरो के वकील ने मुस्किराकर कहा—"सूरदास, तुम बड़े उदार मालूम होते हो; लेकिन युवती सुंदरियों के प्रति उदारता का कोई महत्त्व नहीं रहता।"
सूरदास—"इसी से न यह मुकदमा चला है। मैंने कोई बुराई नहीं की। हाँ, संसार जो चाहे, समझे। मैं तो भगवान् को जानता हूँ। वही सबकी करनी को देखनेवाला है। अगर भैरो उसे अपने घर न रखेगा और न सरकार कोई ऐसी जगह बतावेगी, जहाँ यह औरत इजत-आबरू के साथ रह सके, तो मैं उसे अपने घर से निकलने न दूँगा। वह निकलना भी चाहेगी, तो न जाने दूँगा। इसने तो जब से इस मुकदमे की खबर सुनी है, यही कहा करती है कि मुझे जाने दो, पर मैं उसे जाने नहीं देता।"
वकील—"साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि मैंने उसे रख लिया है।"
सूरदास—"हाँ, रख लिया है, जैसे भाई अपनी बहन को रख लेता है, बाप बेटी को रख लेता है। अगर सरकार ने उसे जबरजस्ती मेरे घर से निकाल दिया, तो उसकी आबरू की जिम्मेदारी उसी के सिर होगी।"
सुभागी का बयान हुआ—"भैरो मुझे बेकसूर मारता है, गालियाँ देता है। मैं उसके साथ न रहूँगी। सूरदास भला आदमी है, इसीलिए उसके पास रहती हूँ। भैरो यह नहीं देख सकता, सूरदास के घर से मुझे निकालना चाहता है।"
वकील—"तू पहले भी सूरदास के घर जाती थी?"
सुभागी—"जभी अपने घर मार खाती थी, तभी जान बचाकर उसके घर भाग जाती थी। वह मेरे आड़े आ जाता था। मेरे कारन उसके घर में आग लगी, मार पड़ी, कौन-कौन-सी दुर्गत नहीं हुई। अदालत की कसर थी, वह भी पूरी हो गई।"
राजा—"भैरो, तुम अपनी औरत को रखोगे?"
भैरो—"हाँ सरकार, रखूँगा।"
राजा—"मारोगे तो नहीं?"
भैरो—"कुचाल न चलेगी, तो क्यों मारूगा।"
राजा—"सुभागी, तू अपने आदमी के घर क्यों नहीं जाती? वह तो कह रहा है, न मारूँगा।"