भैरो की बॉछे खिल गई, बोला-"ताड़ी की कौन बात है, दूकान तुम्हारी है, जितनी चाहो, पियो, पर जरा मोतबर गवाह दिलाना।"
मिस्त्री-"अजी, कहो तो बाबू लोगों को हाजिर कर दूँ। बस, ऐसी पिला देना कि सब यहीं से गिरते हुए घर पहुँचे।"
भैरो-“अजी, कहो तो इतनी पिला दूँ कि दो-चार लाशें उठ जायँ।" यों बातें करते हुए दोनों दूकान पहुँचे। वहाँ २०-२५ आदमी, जो इसी कारखाने के नौकर थे, बड़ी उत्कंठा से भैरो की राह देख रहे थे। भैरो ने तो पहुँचते ही ताड़ी नापनी शुरू की, और इधर मिस्त्री ने गवाहों को तैयार करना शुरू किया। कानों में बातें होने लगीं।
एक-मौका अच्छा है। अंधे के घर से निकलकर जायगी कहाँ! भैरो अब उसे न रखेगा।"
दूसरा-"आखिर हमारे दिल-बहलाव का भी तो कोई सामान होना चाहिए।"
तीसरा-"भगवान ने आप ही भेज दिया। बिल्ली के भागों छींका टूटा।" इधर तो यह मिसकोट हो रही थी, उधर सुभागी सूरदास से कह रही थी---"तुम्हारे ऊपर दावा हो रहा है।"
सूरदास ने घबराकर पूछा-"कैसा दावा?"
सुभागी-"मुझे भगा लाने का। गवाह ठीक किये जा रहे हैं। गाँव का तो कोई आदमी नहीं मिला, लेकिन पुतलीघर के बहुत-से मजूरे तैयार हैं। मुझसे अभी जगधर कह रहे थे, पहले गाँव के सब आदमी गवाही देने जा रहे थे।"
सूरदास-"फिर रुक कैसे गये?"
सुभागी-"जगधर ने सबको समझा-बुझाकर रोक लिया।"
सूरदास-"जगधर बड़ा भलामानुस है, मुझ पर बड़ी दया करता रहता है।"
सुभागी-"तो अब क्या होगा?"
सूरदास-"दावा करने दे, डरने की कोई बात नहीं। तू यही कह देना कि मैं भैरो के साथ न रहूँगी। कोई कारन पूछे, तो साफ-साफ कह देना, वह मुझे मारता है।”
सुभागी-"लेकिन इसमें तुम्हारी कितनी बदनामी होगी!”
सूरदास-"बदनामी की चिंता नहीं, जब तक वह तुझे रखने को राजी न होगा, मैं तुझे जाने ही न दूँगा।"
सुभागी-"वह राजी भी होगा, तो उसके घर न जाऊँगी। वह मन का बड़ा मैला आदमी है, इसकी कसर जरूर निकालेगा। तुम्हारे घर से भी चली जाऊँगी।"
सूरदास-"मेरे घर से क्यों चली जायगी? मैं तो तुझे नहीं निकालता।"
सुभागी-"मेरे कारन तुम्हारी कितनी जगहँसाई होगी। मुहल्लेवालों का तो मुझे कोई डर न था। मैं जानती थी कि किसी को तुम्हारे ऊपर संदेह न होगा, और होगा भी, तो छिन-भर में दूर हो जायगा। लेकिन ये पुतलीघर के उजड्ड मजूरे तुम्हें क्या जानें।