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रंगभूमि


कोई समझानेवाला नहीं। कहीं भरतीवालों के हाथ पड़ गई, तो पता भी न लगेगा कि कहाँ गई। सभी लोग जानकर अनजान बनते हैं।"

वह यही सोचता-बिचारता सड़क को ओर चला था कि सुभागी आकर बोली—"सूरे, मैं कहाँ रहूँगी?"

सूरदास ने कृत्रिम उदासीनता से कहा— "मैं क्या जानूँ, कहाँ रहेगी! अभी तू ही तो भैरो से कह रही थी कि लाठी लेकर जाओ। तू क्या यह समझती थी कि मैं भैरो को मारने गया हूँ?"

सुभागी—"हाँ सूरे, झूठ क्यों बोलू? मुझे यह खटका तो हुआ था।"

सूरदास—"जब तेरी समझ में मैं इतना बुरा हूँ, तो फिर मुझसे क्यों बोलती है? अगर वह लाठी लेकर आता और मुझे मारने लगता, तो तू तमासा देखती और हँसती, क्यों? तुझसे तो भैरो ही अच्छा कि लाठी-लबेद लेकर नहीं आया। जब तूने मुझसे बैर ठान रखा है, तो मैं तुझसे क्यों न बैर ठानूंँ?"

सुभागी—(रोती हुई)"सूरे, तुम भी ऐसा कहोगे, तो यहाँ कौन है, जिसकी आड़ में मैं छिन-भर भी बैठूँगी। उसने अभी मारा है, मगर पेट नहीं भरा, कह रहा है कि जाकर पुलिस में लिखाये देता हूँ। मेरे कपड़े-लत्ते सब बाहर फेक दिये हैं। इस झोपड़ी के सिंवा अब मुझे और कहीं सरन नहीं।”

सूरदास—"मुझे भी अपने साथ मुहल्ले से निकलवायेगी क्या?"

सुभागी—"तुम जहाँ जाओगे, मैं भी तुम्हारे साथ चलूंँगी।"

सूरदास—"तब तो तू मुझे कहीं मुँह दिखाने-लायक न रखेगी। सब यही कहेंगे कि अंधा उसे बहकाकर ले गया।"

सुभागी—" तुम तो बदनामी से बच जाओगे, लेकिन मेरी आबरू कैसे बचेगी? है कोई मुहल्ले में ऐसा, जो किसी की इजत-आबरू जाते देखे, तो उसकी बाँह पकड़ ले? यहाँ तो एक टुकड़ा रोटी भी माँगूँ, तो न मिले। तुम्हारे सिवा अब मेरा और कोई नहीं है। पहले मैं तुम्हें आदमी समझती थी, अब देवता समझती हूँ। चाहो, तो रहने दो; नहीं तो कह दो, कहीं मुँह में कालिख लगाकर ब मरूँ।"

सूरदास ने देर तक चिंता में मग्न रहने के बाद कहा-"सुभागी, तू आप समझदार है, जैसा जी में आये, कर। मुझे तेरा खिलाना-पहनाना भारी नहीं है। अभो सहर में इतना मान है कि जिसके द्वार पर खड़ा हो जाऊँगा, वह नाहीं न करेगा। लेकिन मेरा मन कहता है कि तेरे यहाँ रहने से हमारा कल्यान न होगा। हम दोनों ही बदनाम हो जायेंगे। मैं तुझे अपनी बहन समझता हूँ, लेकिन अंबा संसार तो किसी की नीयत नहीं देखता। अभी तू ने देखा, लोग कैसी-कैसी बातें करते रहे। पहले भी गाली उठ चुकी है। जब तू खुल्लमख्नुल्ला मेरे घर में रहेगो, तब तो अनरथ ही हो जायगा। लोग गरदन काटने पर उतारू हो जायँगे। बता, क्या करूँ?"

सुभागी—"जो चाहे करो, पर मैं तुम्हें छोड़कर कहीं न जाऊँगी।"