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रंगभूमि
वीरपाल-"आपसे सफाई हो गई, तो अब किसी का गम नहीं। अब मुझे यहीं से रुखसत कीजिए।"
विनय—"एक दिन के लिए तो मेरे मेहमान हो जाइए!"
वीरपाल—"ईश्वर ने चाहा, तो जल्द ही आपके दर्शन होंगे। मुझ पर कृपा रखिएगा।"
विनय—"सोफिया से मेरा कुछ जिक्र न कीजिएगा।"
वीरपाल—“जब तक वह खुद न छेड़ेंगी, मैं न करूँगा।"
विनय—"मेरी यह घबराहट, यह बावलापन, इसका जिक्र भूलकर भी न कीजिएगा। मैं न जाने क्या-क्या बक रहा हूँ, अपनी भाषा और विचार, एक पर भी मुझे विश्वास नहीं रहा, संज्ञाहीन-सा हो रहा हूँ। आप उनसे इतना ही कह दीजिएगा कि मुझसे कुछ नहीं बोले। इसका वचन दीजिए।"
वीरपाल—"अगर वह मुझसे कुछ न पूछेगी, तो मैं कुछ न कहूँगा।"
विनय—"मेरी खातिर से इतना जरूर कह दीजिएगा कि आपका जरा भी जिक्र न करते थे।"
वीरपाल—"झूठ तो न बोलूँगा।"
विनय—"जैसी तुम्हारी इच्छा।"