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रंगभूमि


था, न जाने ईसाई-खानदान में क्यों पैदा हुई। मुझसे मुँह फेरकर वह अब किसी को मुँह नहीं लगा सकती। इसका मुझे उतना ही विश्वास है, जितना अपनी आँखों का। वह अब विवाह ही न करेगी।"

वीरपाल–“आप बहुत सत्य कहते हैं, वास्तव में देवी हैं।"

विनय-'सच कहना, कभी मेरी चर्चा भी करती थीं?"

“वीरपाल-"इसके सिवा तो उन्हें और कोई बात ही न थी। घाव गहरा था, अचेत पड़ी रहती थीं, पर चौंक-चौंककर आपको पुकारने लगतीं। कहती-विनय को बुला दो, उन्हें देखकर तब मरूँगी। कभी-कभी तो दिन-के-दिन आप ही की रट लगाती रह जाती थीं। जब किसी को देखतीं, यही पूछती, विनय आये? कहाँ हैं? मेरे सामने लाना। उनके चरण कहाँ हैं? हम लोग उनको बेकसी देख-देखकर रोने लगते थे। जर्राह ने ऐसी चीर-फाड़ की कि आपसे क्या बताऊँ, याद करके रोयें खड़े हो जाते हैं! उसे देखते ही सूख जाती थीं, लेकिन ज्यों ही कह देते कि आज विनयसिंह के आने की खबर है; बस, तुरंत दिल मजबूत करके मरहम-पट्टी करा लेतो थीं। जर्राह से कहती-जल्दी करो, वह आनेवाले हैं; ऐसा न हो, आ जायें। यह समझिए, आपके नाम ने उन्हें मृत्यु के मुख से निकाल लिया.."

विनय अवरुद्ध कंठ से बोले-"बस करो, अब और कुछ न कहो। यह करुण कथा नहीं सुनी जाती। कलेजा मुँह को आता है।"

वीरपाल-"एक दिन उसी दशा में आपके पास जाने को तैयार हो गई। रो-रोकर कहने लगों, उन्हें लोगों ने गिरफ्तार कर लिया है, मैं उन्हें छुड़ाने जा रही हूँ..."

विनय-"रहने दो वीरपाल, नहीं तो हृदय फट जायगा, उसके टुकड़े हो जायँगे। मुझे जरा कहीं लिटा दो, न जाने क्यों जी ड्रबा जाता है। आह! मुझ जैसे अभागे का यही उचित दंड है। देवतों से मेरा सुख न देखा गया। इनसे किसी का कभी कल्याण नहीं हुआ। चले चलो, न लेटूँगा। मुझे इसी वक्त जसवंतनगर पहुंँचना है।"

फिर लोग चुपचाप चलने लगे। विनय इतने वेग से चल रहे थे, मानों दौड़ रहे हैं। पीड़ित अंगों में एक विलक्षण स्फूर्ति आ गई थी। बेचारे नायकराम दौड़ते-दौड़ते हाँप रहे थे। रात के दो बजे होंगे। वायु में प्राणप्रद शीतलता का समावेश हो गया था। निशा-सुंदरी प्रौढ़ा हो गई थी, जब उसकी चंचल छवि माधुर्य का रूप ग्रहण कर लेती है, जब उसकी मायाविनी शक्ति दुर्निवार्य हो जाती है। नायकराम तो कई बार ऊँध कर गिरते-गिरते बच गये। विनय को भी विश्राम करने की इच्छा होने लगो कि वीराल बोले-“लीजिए, जसवंतनगर पहुँच गये।"

विनय-"अरे, इतनी जल्द! अभी तो चलते हुए कुल चार घंटे हुए होंगे।"

वीरपाल-"आज सीधे आये।"

विनय-"आओ, आज यहाँ के अधिकारियों से तुम्हारी सफाई करा दूँ।"