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रंगभूमि


सोफिया ने भाई को अवहेलना की दृष्टि से देखकर कहा—"धर्म के विषय में मैं कर्म को वचन के अनुरूप ही रखना चाहती हूँ। चाहती हूँ, दोनों से एक ही स्वर निकले। धन का स्वाँग भरना मेरी क्षमता से बाहर है। आत्मा के लिए मैं संसार के सारे दुःख झेलने को तैयार हूँ। अगर मेरे लिए इस घर में स्थान नहीं है, तो ईश्वर का बनाया हुआ विस्तृत संसार तो है! कहीं भी अपना निर्वाह कर सकती हूँ। मैं सारी विडंबनाएँ सह लूँगी, लोक-निन्दा की मुझे चिन्ता नहीं है; मगर अपनी ही नजरों में गिरकर मैं जिन्दा नहीं रह सकती। अगर यही मान लूँ कि मेरे लिए चारों तरफ से द्वार बन्द हैं, तो भी मैं आत्मा को बेचने की अपेक्षा भूखों मर जाना कहीं अच्छा समझती हूँ।"

प्रभु सेवक--"दुनिया उससे कहीं तंग है, जितना तुम समझती हो।”

सोफिया--"कब के लिए तो जगह निकल ही आयेगी।"

सहसा ईश्वर सेवक ने जाकर उसे छाती से लगा लिया, और अपने भक्ति-गद्गद नेत्र-जल से उसके संतप्त-हृदय को शान्त करने लगे। सोफ़िया को उनकी श्रद्धालुता पर दया आ गई। कौन ऐसा निर्दय प्राणी है, जो भोले-भाले बालक के कठघोड़े का उपहास करके उसका दिल दुखाये, उसके मधुर स्वप्न को विशृङ्खल कर दे?

सोफिया ने कहा-"दादा, आप आकर इस कुरस पर बैठ जायँ, खड़े-खड़े आपको तकलीफ होती है।"

ईश्वर सेवक-"जब तक तू अपने मुख से न कहेगी कि मैं प्रभु मसीह पर विश्वास करती हूँ, तब तक मैं तेरे द्वार पर, यों ही, भिखारियों की भाँति, खड़ा रहूँगा।"

सोफिया-"दादा, मैंने यह कभी नहीं कहा कि मैं प्रभु ईसू पर ईमान नहीं रखती, या मुझे उन पर श्रद्धा नहीं है। मैं उन्हें महान् आदर्श पुरुष और क्षमा तथा दया का अवतार समझती हूँ, और समझती रहूँगी।"

ईश्वर सेवक ने सोफिया के कपोलों का चुंबन करके कहा- "बस, मेरा चित्त शांत हो गया। ईसू तुझे अपने दामन में ले। मैं बैठता हूँ, मुझे ईश्वर-वाक्य सुना, कानों को प्रभु मसीह की वाणो से पवित्र कर।"

सोफिया इनकार न कर सकी। 'उत्पत्ति' का एक परिच्छेद खोलकर पढ़ने लगी। ईश्वर सेवक आँखें बंद करके कुरस' पर बैठ गये, और तन्मय होकर सुनने लगे। मिसेज़ सेवक ने यह दृश्य देखा, और विजयगर्व से मुस्किराती हुई चली गई।

यह समस्या तो हल हो गई; पर ईश्वर सेवक के मरहमों से उसके अंतःकरण का नासूर न अच्छा हो सकता था। आये-दिन उसके मन में धार्मिक शंकाएँ उठती रहती थीं, और दिन-प्रतिदिन उसे अपने घर में रहना दुस्सह होता जाता था। शनैः-शनैः प्रभु सेवक की सहानुभूति भी क्षीण होने लगी। मि० जॉन सेवक को अपने व्यावसायिक कामों से इतना अवकाश ही न मिलता था कि उसके मानसिक विप्लव का निवारण करते। मिसेज़ सेवक पूर्ण निरंकुशता से उस पर शासन करती थीं। सोफिया के लिए सबसे कठिन परीक्षा का समय वह होता था, जब वह ईश्वर सेवक को बाइबिल पढ़कर