यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२९४
रंगभूमि


एकाएक उन्हें याद आ गया, सोफी को स्पर्श करना भी मेरे लिए वर्जित है। उन्होंने तुरंत अपना सिर उसकी जाँघ पर से खींच लिया और अवरुद्ध कंठ से बोले-“मिसेज क्लार्क, आपने मुझ पर बड़ी दया की, इसके लिए आपका अनुगृहीत हूँ।"

सोफ़िया ने तिरस्कार की दृष्टि से देखकर कहा-“अनुग्रह गालियों के रूप में नहीं प्रकट किया जाता।"

विनय ने विस्मित होकर कहा—“ऐसा घोर अपराध मुझसे कभी नहीं हुआ।"

सोफ़िया-"ख्वाहमखाह किसी शख्स के साथ मेरा संबंध जोड़ना गाली नहीं तो क्या है!"

विनय-"मिस्टर क्लार्क?"

सोफिया-"क्लार्क को मैं तुम्हारी जूतियों का तस्मा खोलने के योग्य भी नहीं समझती।"

विनय-"लेकिन अम्माँजी ने......।"

सोफ़िया-"तुम्हारी अम्माँजी ने झूठ लिखा और तुमने उस पर विश्वास करके मुझ पर घोर अन्याय किया। कोयल आम न पाकर भी निमकौड़ियों पर नहीं गिरती।"

इतने में क्लार्क ने आकर पूछा- "इस कैदी की क्या हालत है? डॉक्टर आ रहा है, वह इसकी दवा करेगा। चलो, देर हो रही है।"

सोफिया ने रुखाई से कहा-"तुम जाओ, मुझे फुरसत नहीं।"

क्लार्क-"कितनी देर तक तुम्हारी राह देखूँ?"

सोफ़िया-"यह मैं नहीं कह सकती। मेरे विचार में एक मनुष्य की सेवा करना सैर करने से कहीं आवश्यक है।"

क्लार्क-"खैर, मैं थोड़ी देर और ठहरूँगा।"

यह कहकर वह बाहर चले गये, तब सोफी ने विनय के माथे से पसीना पोछते हुए कहा-“विनय, मैं डूब रही हूँ, मुझे बचा लो। मैंने रानीजी की शंकाओं को निवृत्त करने के लिए यह स्वाँग रचा था।"

विनय ने अविश्वास-सूचक भाव से कहा-"तुम यहाँ क्लार्क के साथ क्यों आई और उनके साथ कैसे रहती हो?"

सोफ़िया का मुख-मंडल लज्जा से आरक्त हो गया। बोली-“विनय, यह मत पूछो, मगर मैं ईश्वर को साक्षी देकर कहती हूँ, मैंने जो कुछ किया, तुम्हारे लिए किया। तुम्हें इस कैद से निकालने के लिए मुझे इसके सिवा और कोई उपाय न सूझा। मैंने क्लार्क को प्रमाद में डाल रखा है। तुम्हारे ही लिए मैंने यह कपट-भेष धारण किया है।। अगर तुम इस वक्त कहो, सोफी, तू मेरे साथ जेल में रह, तो मैं यहाँ आकर तुम्हारे साथ रहूँगी। अगर तुम मेरा हाथ पकड़कर कहो, तू मेरे साथ चल, तो आज ही तुम्हारे साथ चलूँगी। मैंने तुम्हारा दामन पकड़ लिया है और अब उसे किसी तरह नहीं छोड़ सकती, चाहे तुम ठुकरा ही क्यों न दो। मैंने आत्मसम्मान तक तुम्हें समर्पित कर दिया