एक क्षण के बाद भरतसिंह ने रानी के शब्दों का भावार्थ किया-“मेरे खयाल में अभी विनयसिंह को उसी दशा में छोड़ देना चाहिए। यह उसकी परीक्षा है। मनुष्य बड़े-से-बड़ा काम जो कर सकता है, वह यही है कि आत्मरक्षा के लिए मर मिटे। यही मानवीय जीवन का उच्चतम उद्देश्य है। ऐसी ही परीक्षाओं में सफल होकर हमें वह गौरव प्राप्त हो सकता है कि जाति हम पर विश्वास कर सके।"
गंगुली-"रानी हमारी देवी हैं। हम उनके सामने कुछ नहीं कह सकता। पर देवी लोगों का बात संसारवालों के व्यवहार के योग्य नहीं हो सकता। हमको पूरा आशा है कि हमारा सरकार जरूर बोलेगा।"
सनी-"सरकार को न्यायशीलता का एक दृष्टांत तो आपके सामने ही है। अंगर अब भी आपको उस पर विश्वास हो, तो मैं यही कहूँगी कि आपको कुछ दिनों किसी औषधि का सेवन करना पड़ेगा।"
गंगुली-“दो-चार दिन में यह बात मालूम हो जायगा। सरकार को भी तो अपनी नेकनामी-बदनामी का डर है।"
महेंद्रकुमार बहुत देर के बाद बोले-"राह देखते-देखते तो आँखें पथरा गई। हमारी आशा इतनी चिरंजीवी नहीं।"
सहसा टेलीफोन की घंटी बोली। कुँवर साहब ने पूछा-"कौन महाशय हैं?"
"मैं हूँ प्राणनाथ। मिस्टर क्लार्क का तबादला हो गया।"
"कहाँ?"
“पोलिटिकल विभाग में जा रहे हैं। ग्रेड कम कर दिया गया है।"
डॉक्टर गंगुली-"अब बोलिए, मेरा बात सच हुआ कि नहीं। आए लोग कहता था, सरकार का नीयत बिगड़ा हुआ है। पर हम कहता था, उसको हमारा बात मानना पड़ेगा।"
महेंद्रकुमार-"अजी, प्राणनाथ मसखरा है, आपसे दिल्लगी कर रहा होगा।”
भरतसिंह-"नहीं, मुझसे तो उसने कभी दिल्लगी नहीं की।"
रानी-"सरकार ने इतने नैतिक साहस से शायद पहली ही बार काम लिया है।"
गंगुली--"अब वह जमाना नहीं है, जब सरकार प्रजा-मत की उपेक्षा कर सकता था। अब काउंसिल का प्रस्ताव उसे मानना पड़ता है।"
भरतसिंह-"जमाना तो वही है, और सरकार की नीति में भी कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है। इसमें जरूर कोई-न-कोई राजनीतिक रहस्य है।"
जॉन सेवक-"व्यापारी-मंडल ने मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करके गवर्नमेंट के छक्के छुड़ा दिये।"
महेंद्रकुमार-"मेरा डेपुटेशन बड़े मौके से पहुंचा था।"
गंगुली-"मैंने काउंसिल को ऐसा संघटित कर दिया था कि हमको इतना बड़ा मेजारिटी कभी नहीं मिला।"