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साल-भर तक राजा महेंद्रकुमार और मिस्टर क्लार्क में निरंतर चोटें चलती रहीं। पत्र का पृष्ठ रणक्षेत्र था और शृंखलित शूरमों की जगह शरमों से कहीं बलवान् दलीलें। मनों स्याही बह गई, कितनी ही कलमें काम आई। दलीलें कट-कटकर रावण की सेना की भाँति फिर जीवित हो जाती थीं। राजा साहब बार-बार हतोत्साह हो जाते, सरकार से मेरा मुकाबला करना चींटी का हाथी से मुकाबला करना है। लेकिन मिस्टर जॉन सेवक और उनसे अधिक इंदु उन्हें ढाढ़स देती रहती थी। शहर के रईसों ने हिम्मत से कम, स्वार्थ-बुद्धि से अधिक काम लिया। उस विनयपत्र पर जो डॉक्टर गंगुली ने नगर निवासियों की ओर से गवर्नर की सेवा में भेजने के लिए लिखा था, हस्ताक्षर करने के समय अधिकांश सजन बीमार पड़ गये, ऐसे असाध्य रोग से पीड़ित हो गये कि हाथ में कलम पकड़ने की शक्ति न रही। कोई तीर्थ यात्रा करने चला गया, कोई किसी परमावश्यक काम से कहीं बाहर रवाना हो गया, जो गिने-गिनाये लोग कोई हीला न कर सके, वे भी हस्ताक्षर करने के बाद मिस्टर क्लार्क से क्षमा-प्रार्थना कर आये-"हुजूर, न जाने उसमें क्या लिखा था, हमारे सामने तो केवल सादा कागज आया था, हमसे यही कहा गया कि यह पानी का महसूल घटाने की दरख्वास्त है। हमें मालूम होता कि उसे सादे पत्र पर पीछे से हुजूर की शिकायत लिखी जायगी, तो हम भूलकर भी कलम न उठाते। हाँ, जिन महानुभावों ने सिगरेट-कंपनी के हिस्से लिये थे, उन्हें विवश होकर हस्ताक्षर करने पड़े। हस्ताक्षर करनेवालों की संख्या यद्यपि बहुत न थी; पर डॉक्टर गंगुली को व्यवस्थापक सभा में सरकार से प्रश्न करने के लिए एक बहाना मिल गया। उन्होंने अदम्य उत्साह और धैर्य के साथ प्रश्नों की बाढ़ जारी रखी। सभा में डॉक्टर महोदय का विशेष सम्मान था, कितने ही सदस्यों ने उनके प्रश्नों का समर्थन किया, यहाँ तक कि डॉक्टर गंगुली के एक प्रस्ताव पर अधिकारियों को बहुमत से हार माननी पड़ी। इस प्रस्ताव से लोगों को बड़ी-बड़ी आशाएँ थी; किंतु जब इसका भी कुछ असर न हुआ, तो जगह-जगह सरकार पर अविश्वास प्रकट करने के लिए सभाएँ होने लगीं। रईसों और जमींदारों की तो भय के कारण जबान बंद थी; किंतु मध्यम श्रेणी के लोगों ने खुल्लमखुल्ला इस निरंकुशता का विरोध करना शुरू किया। कुँवर भरतसिंह को उनका नेतृत्व प्रात हुआ और वह स्पष्ट शब्दों में कहने लगे-“अब हमें अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। हमारा उद्धार अपने ही हाथों होगा।" महेंद्रकुमार भी गुप्त रूप से इस दल को प्रोत्साहित करने लगे। डॉक्टर गंगुली के बहुत कुछ आश्वासन देने पर भी शासकों पर उन्हें अश्रद्धा हो गई। निराशा निर्बलता से उत्पन्न होती है; पर उसके गर्भ से शक्ति का जन्म होता है।
रात के नौ बज-गये थे। विनयसिंह के कारावास-दंड का समाचार पाकर कुवर