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रंगभूमि

कुल्सूम ने चिढ़कर कहा-"जिसके दाम आते हैं, वह सिर पर सवार होगा ही! अम्माँजानों से क्यों नहीं माँगते? मेरे बच्चों को तो मिठाई मिली नहीं; जिन्होंने उचक-उचककर खाया-खिलाया है, वे दाम देने की बेर क्यों भीगी बिल्ली बनी बैठी हुई हैं?"

ताहिर-"इसी मारे तो मैं तुमसे कोई बात कहता नहीं। रोकड़ से ले लेने में क्या हरज है? तनख्वाह मिलते ही जमा कर दूँगा।"

कुल्सूम-"खुदा के लिए कहीं यह गजब न करना। रोकड़ को काला साँप समझो। कहीं आज ही साहब रकम की जाँच करने लगे, तो?"

ताहिर-“अजी नहीं, साहब को इतनी फुरसत कहाँ कि रोकड़ मिलाते रहें!"

कुल्सूम-“मैं अमानत की रकम छूने को न कहूँगी। ऐसा ही है, तो नसीमा का तौक उतारकर कहीं गिरो रख दो, और तो मेरे किये कुछ नहीं हो सकता।"

ताहिरअली को दुःख तो बहुत हुआ; पर करते क्या। नसीमा का तौक निकालते थे, और रोते थे। कुल्सूम उसे प्यार करती थी और फुसलाकर कहती थी, तुम्हें नया तौक बनवाने जा रहे हैं। नसीमा फूली न समाती थी कि मुझे नया तौक मिलेगा।

तौक रूमाल में लिये हुए ताहिरअली बाहर निकले, और जगधर को अलग ले जाकर बोले-"भई, इसे ले जाओ, कहीं गिरो रखकर अपना काम चलाओ। घर में रुपये नहीं हैं।"

जगधर-"उधार सौदा बेचना पाप है; पर करूँ क्या, नगद बेचने लगूँ, तो घूमता ही रह जाऊँ।"

यह कहकर उसने सकुचाते हुए तौक ले लिया और पछताता हुआ चला गया। कोई दूसरा आदमी अपने गाहक को इतना दिक करके रुपये न वसूल करता। उसे लड़की पर दया आ ही जाती, जो मुस्किराकर कह रही थी, मेरा तौक कब बनाकर लाओगे? परंतु जगधर गृहस्थी के असह्य भार के कारण उससे कहीं असजन बनने पर मजबूर था, जितना वह वास्तव में था।

जगधर को गये आध घंटा भी न गुजरा था कि बजरंगी त्योरियाँ बदले हुए आकर बोला-"मुंशीजी, रुपये देने हों, तो दीजिए, नहीं कह दीजिए, बाबा, हमसे नहीं हो सकता; बस, हम सबर कर लें। समझ लेंगे कि एक गाय नहीं लगी। रोज-रोज दौड़ाते क्यों हैं?"

ताहिर-"बिरादर, जैसे इतने दिनों तक सब किया है, थोड़े दिन और करो। ख्नुदा ने चाहा, तो अबकी तुम्हारी एक पाई भी न रहेगी।"

बजरंगी-“ऐसे वादे तो आप बीसों बार कर चुके हैं।"

ताहिर-"अबकी पक्का वादा करता हूँ।”

बजरंगी-"तो किस दिन हिसाब कीजिएगा?"

ताहिरअली असमंजस में पड़ गये, कौन-सा दिन बतलायें। देनदारों को हिसाब के दिन का उतना ही भय होता है, जितना पापियों को। वे 'दो-चार', 'बहुत जल्द',