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सैयद ताहिरअली को पूरी आशा थी कि जब सिगरेट का कारखाना बनना शुरू हो जायगा, तो मेरी कुछ-न-कुछ तरक्की अवश्य हो जायगी। मि० सेवक ने उन्हें इसका वचन दिया था। इस आशा के सिवा उन्हें अब तक ऋणों को चुकाने का कोई उपाय न नजर आता था, जो दिनों-दिन, बरसात की घास के समान बढ़ते जाते थे। वह स्वयं बड़ी किफायत से रहते थे। ईद के अतिरिक्त कदाचित् और कभी दूध उनके कंठ के नीचे न जाता था। मिठाई उनके लिए हराम थी। पान-तंबाकू का उन्हें शौक ही न था। किंतु वह खुद चाहे कितनी ही किफायत करें, घरवालों की जरूरत में काट-कपट करना न्याय-विरुद्ध समझते थे। जैनब और रकिया अपने लड़कों के लिए दूध लेना आवश्यक समझती थीं। कहतीं-“यही तो लड़कों के खाने-पीने की उम्र है, इसी उम्र में तो उनकी हड्डियाँ चौड़ी-चकली होती हैं, दिल और दिमाग बढ़ते हैं। इस उम्र में लड़कों को मुकब्बी खाना न मिले, तो उनकी सारी जिंदगी बरबाद हो जाती है।"
लड़कों के विषय में यह कथन सत्य हो या नहीं; पर पान-तंबाकू के विषय में ताहिरअली की विमाताएँ जिस युक्ति का प्रतिपादन करती थीं, उसकी सत्यता स्वयं सिद्ध थी-"स्त्रियों का इनके बगैर निबाह ही नहीं हो सकता। कोई देखे, तो कहे, क्या इनके यहाँ पान तक मयस्सर नहीं, यही तो अब शराफत की एक निशानी रह गई है, मामाएँ नहीं, खवासें नहीं, तो क्या पान से भी गये! मरदों को पान की ऐसी जरूरत नहीं। उन्हें हाकिमों से मिलना-जुलना पड़ता है, पराई बंदगी करते हैं, उन्हें पान की क्या जरूरत!"
विपत्ति यह थी कि माहिर और जाबिर तो मिठाइयाँ खाकर ऊपर से दूध पीते और साबिर और नसीमा खड़े मुँह ताका करते। जैनब बेगम कहतीं-"इनके गुड़ के बाप कोल्ह ही, खुदा के फजल से, जिंदा हैं। सबको खिलाकर खिलायें, तभी खिलाना कहलाये। सब कुछ तो उन्हीं की मुट्ठी में है, जो चाहें, खिलायें, जैसे चाहें, रखें; कोई हाथ पकड़नेवाला है?"
वे दोनों दिन-भर बकरी की तरह पान चबाया करतीं, कुल्सूम को भोजन के पश्चात्ए क बीड़ा भी मुश्किल से मिलता था। अपनी इन जरूरतों के लिए ताहिरअली से पूछने या चादर देखकर पाँव फैलाने की जरूरत न थी।
प्रातःकाल था। चमड़े की खरीद हो रही थी। सैकड़ों चमार बैठे चिलम पी रहे ये। यही एक समय था, जब ताहिरअली को अपने गौरव का कुछ आनंद मिलता था। इस वक्त उन्हें अपने महत्त्व का हलका-सा नशा हो जाता था। एक चमार द्वार पर भाड लगाता, एक उनका तख्त साफ करता, एक पानी भरता; किस का साग-भाजी लाने के लिए बाजार भेज देते और किसी से लकड़ी चिराते। इतने आदमियों को