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सूरदास के आर्तनाद ने महेंद्रकुमार की ख्याति और प्रतिष्ठा को जड़ से हिला दिया। वह आकाश से बातें करनेवाला कीर्ति-भवन क्षण-भर में धराशायी हो गया। नगर के लोग उनकी सेवाओं को भूल-से गये। उनके उद्योग से नगर का कितना उपकार हुआ था, इसको किसी को याद ही न रही। नगर को नालियाँ और सड़कें, बगीचे और गलियाँ, उनके अविश्रांत प्रयत्नों की कितनी अनुगृहीत थीं! नगर की शिक्षा और स्वास्थ्य को उन्होंने किस हीनावस्था से उठाकर उन्नति के मार्ग पर लगाया था, इसकी ओर कोई ध्यान ही न देता था। देखते-देखते युगांतर हो गया। लोग उनके विषय में आलोचनाएँ करते हुए कहते-“अब वह जमाना नहीं रहा, जब राजे रईसों के नाम आदर से लिये जाते थे, जनता को स्वयं ही उनमें भक्ति होती थी। वे दिन विदा हो गये। ऐश्वर्य-भक्ति प्राचीन काल की राज्य-भक्ति ही का एक अंश थी। प्रजा अपने-राजा, जागीरदार, यहाँ तक कि अपने जमींदार पर सिर कटा देती थी। यह सर्वमान्य नीति-सिद्धांत था कि राजा भोक्ता है, प्रजा भोग्य है। यही सृष्टि का नियम था, लेकिन आज राजा और प्रजा में भोक्ता और भोग्य का संबंध नहीं है, अब सेवक और सेव्य का संबंध है। अब अगर किसी राजा की इज्जत है, तो उसको सेवा प्रवृत्ति के कारण। अन्यथा उसकी दशा दाँतों-तले दबी हुई जिह्वा की-सी है। प्रजा को भी उस पर विश्वास नहीं आता। अब जनता उसी का सम्मान करती है, उसी पर न्योछावर होती है, जिसने अपना सर्वस्व प्रजा पर अर्पित कर दिया हो, जो त्याग-धन का धनी हो। जब तक कोई सेवा-मार्ग पर चलना नहीं सीखता, जनता के दिलों में घर नहीं कर पाता।"

राजा साहब को अब मालूम हुआ कि प्रसिद्धि श्वेत वस्त्र के सदृश है, जिस पर एक धब्बा भी नहीं छिप सकता। जिस तरफ उनकी मोटर निकल जाती, लोग उन पर आवाजें कसते, यहाँ तक कि कभी-कभी तालियाँ भी पड़तीं। बेचारे बड़ी विपत्ति में फंँसे हुए थे। ख्याति-लाभ करने चले थे, मर्यादा से भी हाथ धोया। और अवसरों पर इंदु से परामर्श कर लिया करते थे, इससे हृदय को शांति मिलती थी; पर अब वह द्वार भी बंद था। इंदु से सहानुभूति की कोई आशा न थी।

रात के नौ बजे थे। राजा साहब अपने दीवानखाने में बैठे हुए इसी समस्या पर "विचार कर रहे थे लोग कितने कृतघ्न होते हैं! मैंने अपने जीवन के सात वर्ष उनकी निरंतर सेवा में व्यतीत कर दिये, अपना कितना समय, कितना अनुभव, कितना सुख उनकी नजर किया! उसका मुझे आज यह उपहार मिल रहा है कि एक अंधा भिखारी मुझे सारे शहर में गालियाँ देता फिरता है और कोई उसकी जबान नहीं पकड़ता, बल्कि लोग उसे और भी उकसाते और उत्तेजित करते हैं। इतने सुव्यवस्थित रूप से अपने इलाके का प्रबंध करता, तो अब तक निकासी में लाखों रुपये की वृद्धि हो गई होती।