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रंगभूमि


बज गये और क्लार्क का कहीं पता न था। वह भी तड़के ही आने को तैयार थे; पर आते हुए झेपते थे कि कहीं सोफिया यह न समझे कि इस जरा-सी बात का मुझ पर एहसान जताने आये हैं। इससे अधिक भय यह था कि वहाँ लोगों को क्या मुँह दिखाऊँगा, या तो मुझे देखकर लोग दिल-ही-दिल में जलेंगे, या खुल्लमखुल्ला दोषारोपण करेंगे। सबसे ज्यादा खौफ ईश्वर सेवक का था कि कहीं वह दुष्ट, पापी, शैतान, काफिर न कह बैठे। वृद्ध आदमी हैं, उनकी बातों का जवाब ही क्या। इन्हीं कारणों से वह आते हुए हिचकिचाते थे और दिल में मना रहे थे कि सोफिया ही इधर आ निकले।

नौ बजे तक क्लार्क का इंतजार करने के बाद सोफिया अधीर हो उठी। इरादा किया, मैं ही चलूँ कि सहसा मि० जॉन सेवक आकर बैठ गये और सोफिया को क्रोधो-न्मत्त नेत्रों से देखकर बोले-"सोफी, मुझे तुमसे ऐसी आशा न थी। तुमने मेरे सारे मंसूबे खाक में मिला दिये।"

सोफिया-"मैंने! क्या किया? मैं आपका आशय नहीं समझी।"

जॉन सेवक-"मेरा आशय यह है कि तुम्हारी ही दुष्प्रेरणा से मि० क्लार्क ने आना पहला हुक्म रद्द किया है।”

सोफिया-"आपको भ्रम है।"

जॉन सेवक-"मैंने बिना प्रमाण के आज तक किसी पर दोषारोपण नहीं किया। मैं अभी इंदुदेवी से मिलकर आ रहा हूँ। उन्होंने इसके प्रमाण दिये कि यह तुम्हारी करतूत है।"

सोफिया-"आपको विश्वास है कि इंदु ने मुझ पर जो इलजाम रखा है, वह ठीक है?"

जॉन सेवक-"उसे असत्य समझने के लिए मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।"

सोफिया-"उसे सत्य समझने के लिए यदि इंदु का वचन काफी है, तो उसे असत्य समझने के लिए मेरा वचन क्यों काफी नहीं है?"

जॉन सेवक-"सच्ची बात विश्वासोत्पादक होती है।"

सोफिया—"यह मेरा दुर्भाग्य है कि मैं अपनी बातों में वह नमक-मिर्च नहीं लगा सकता; लेकिन मैं इसका आपको विश्वास दिलातो हूँ कि इंदु ने हमारे और विलिमय के बीच में द्वष डालने के लिए वह स्वाँग रचा है।”

जॉन सेवक ने भ्रम में पड़कर कहा—"सोफी, मेरी तरफ देख। क्या तू सच कह रही है?"

सोफिया ने लाख यत्न किये कि पिता की ओर निश्शंक दृटि से देखे; किंतु आँखें आप-ही-आप झुक गई। मनोवृत्ति वाणी को दृषित कर सकती है; अंगों पर उसका जोर नहीं चलता। जिह्वा चाहे निश्शब्द हो जाय; पर आँखें बोलने लगती हैं। मिस्टर जॉन सेवक ने उसकी लजा-पीड़ित आँखें देखीं और क्षुब्ध होकर बोले-"आखिर तुमने क्या समझकर ये काँटे बोये?"