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मि० क्लार्क ने मोटर से उतरते ही अरदली को हुक्म दिया—"डिप्टी साहब को फौरन हमारा सलाम दो।" नाजिर, अहलमद और अन्य कर्मचारियों को भी तलब किया गया। सब-के-सब घबराये—“यह आज असमय क्यों तलबी हुई, कोई गलती तो नहीं पकड़ी गई? किसी ने रिशवत की शिकायत तो नहीं कर दी?" बेचारों के हाथ-पाँव फूल गये।

डिप्टी साहब बिगड़े—"मैं कोई साहब का जाती नौकर नहीं हूँ कि जब चाहा, तलब कर लिया। कचहरी के समय के भीतर जीतनी बार चाहें, तलब करें; लेकिन यह कौन-सी बात है कि जब जी में आया, सलाम भेज दिया।" इरादा किया, न चलूँ; पर इतनी हिम्मत कहाँ कि साफ-साफ इनकार कर दें। बीमारी का बहाना करना चाहा; मगर अरदली ने कहा—"हजूर, इस वक्त न चलेंगे, तो साहब बहुत नाराज होंगे, कोई बहुत जरूरी काम है, तभी तो मोटर से उतरते ही आपको सलाम दिया।"

आखिर डिप्टी साहब को मजबूर होकर आना पड़ा। छोटे अमलों ने जरा भी चूँन की, अरदली की सूरत देखते ही हुक्का छोड़ा, चुपके से कपड़े पहने, बच्चों को दिलास दिया और हाकिम के हुक्म को अकाल-मृत्यु समझते हुए, गिरते-पड़ते बँगले पर आ पहुँचे। साहब के सामने आते ही डिप्टी साहब का सारा गुस्सा उड़ गया, इशारों पर दौड़ने लगे। मि. क्लार्क ने सूरदास की जमीन को मिसिल मँगवाई, उसे बड़े गोर से पढ़वाकर सुना, तब डिप्टी साहब से राजा महेंद्रकुमार के नाम एक परवाना लिखवाया, जिसका आशय यह था—"पाँड़ेपुर में सिगरेट के कारखाने के लिए जमीन ली गई है, वह उस धारा के उद्देश्य के विरुद्ध है, इसलिए मैं अपनी अनुमति वापस लेता हूँ। मुझे इस विषय में धोखा दिया गया है और एक व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कानून का दुरुपयोग किया गया है।"

डिप्टो साहब ने दबी जबान से शंका की—"हुजूर, अब आपको वह हुक्म मंसूख करने का मजाज नहीं; क्योंकि सरकार ने उसका समर्थन कर दिया है।"

मिस्टर क्लार्क ने कठोर स्वर में कहा—"हमी सरकार हैं, हमने वह कानून बनाया है, हमको सब अख्तियार है। आप अभी राजा साहब को परवाना लिख दें, कल लोकल गवर्नमेंट को उसकी नकल भेज दीजिएगा। जिले के मालिक हम हैं, सूबे की सरकार नहीं। यहाँ बलवा हो जायगा, तो हमको उसका इंतजाम करना पड़ेगा, सूबे की सरकार यहाँ न आयेगी।"

अमले थर्रा उठे, डिप्टी साहब को दिल में कोसने लगे-"यह क्यों बीच में बोलते हैं। अँगरेज है, कहीं गुस्से में आकर मार बैठे, तो उसका क्या ठिकाना। जिले का बादशाह है, जो चाहे करे, अपने से क्या मतलब।”

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