सोफी-"तो आपने क्यों अपनी स्वीकृति दी?"
क्लार्क-"क्या करता?"
सोफी-"अस्वीकार कर देते। साफ लिख देना चाहिए था कि इस काम के लिए किसी की जमीन नहीं जब्त की जा सकती।"
क्लार्क-"तुम नाराज न हो जाती?”
सोफी-"कदापि नहीं। आपने शायद मुझे अब तक नहीं पहचाना।"
क्लार्क-"तुम्हारे पापा जरूर ही नाराज हो जाते।”
सोफी-मैं और पाना एक नहीं हैं। मेरे और उनके आचार-व्यवहार में दिशाओं का अन्तर है।"
क्लार्क- "इतनी बुद्धि होती, तो अब तक तुम्हें कब का पा गया होता। मैं तुम्हारे स्वभाव और विचारों से परिचित न था। समझा, शायद यह अनुमति मेरे लिए हितकर हो।”
सोफी-“सारांश यह कि मैं ही इस अन्याय की जड़ हूँ। राजा साहब ने मुझे प्रसन्न करने के लिए बोर्ड में यह प्रस्ताव रखा। आपने भी मुझी को प्रसन्न करने के लिए स्वीकृति प्रदान की। आप लोगों ने मेरी तो मिट्टी ही खराब कर दी।"
क्लार्क-'मेरे सिद्धान्तों से तुम परिचित हो। मैंने अपने ऊपर बहुत जब करके यह प्रस्ताव स्वीकार किया है।”
सोफी-"आपने अपने ऊपर जब नहीं किया है, मेरे ऊपर किया है, और आपको इसका प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।”
क्लार्क-"मैं न जानता था कि तुम इतनी न्यायप्रिय हो।”
सोफी-"मेरी तारीफ करने से इस पाप का प्रायश्चित्त न होगा।"
क्लार्क-"मैं अंधे को किसी दूसरे गाँव में इतनी ही जमीन दिला दूँगा।"
सोफिया--"क्या उसी की जमीन उसे नहीं लौटाई जा सकती?"
क्लार्क-"कठिन है।”
सोफिया-"असंभव तो नहीं है?"
क्लार्क-"असंभव से कुछ ही कम है।”
सोफिया—"तो समझ गई, असंभव नहीं है, आपको यह प्रायश्चित्त करना ही पड़ेगा। कल ही उस प्रस्ताव को मंसूख कर दीजिए।"
क्लार्क—"प्रिये, तुम्हें मालूम नहीं, उसका क्या परिणाम होगा।"
सोफिया—"मुझे इसकी चिंता नहीं। पापा को बुरा लगेगा, लगे। राजा साहब का अपमान होगा, हो। मैं किसी के लाभ या सम्मान-रक्षा के लिए अपने ऊपर पाप का भार क्यों लूँ? क्यों ईश्वरीय दंड की भागिनी बनूँ? आप लोगों ने मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरे सिर पर एक महान् पातक का बोझ रख दिया है। मैं इसे सहन नहीं कर सकती। आपको अंधे की जमीन वापस करनी पड़ेगी।"