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रंगभूमि

मिसेज सेवक-“पाजी आदमी है। इसे पुलिस के हवाले क्यों नहीं करा देते?"

ईश्वर सेवक-"नहीं बेटा, ऐसा भूलकर भी न करना; नहीं तो अखबारवाले इस बात का बतंगड़ बनाकर तुम्हें बदनाम कर देंगे। प्रभु, मेरा मुँह अपने दामन में छिपा और इस दुष्ट की जबान बंद कर दे।"

मिसेज सेवक-"दो-चार दिन में आप ही शांत हो जायगा। टेकेदारों को ठीक कर लिया न?"

जॉन सेवक-"हॉ, काम तो आजकल में शुरू हो जानेवाला है, मगर इस मूजी को चुप करना आसान नहीं है। मुहल्लेवालों को तो मैंने फोड़ लिया, वे सब इसकी मदद न करेंगे; मगर मुझे आशा थी कि उधर से सहारा न पाकर इसकी हिम्मत टूट जायगी। वह आशा पूरी न हुई। मालूम होता है, बड़े जीवट का आदमी है, आसानी से काबू में आनेवाला नहीं है। राजा साहब का म्युनिसिपलबोर्ड में अब वह जोर नहीं रहा; नहीं तो कोई चिंता न थी। उन्हें पूरे साल-भर तक बोर्डवालों की खुशामद करनी पड़ी, तब जाकर वह प्रस्ताव मंजूर करा सके। ऐसा न हो, बोर्डवाले फिर कोई चाल चलें।"

इतने में राजा महेंद्रकुमार की मोटर सामने आकर रुको। राजा साहब बोले-"आपसे खूब मुलाकात हुई। मैं आपके बँगले से लौटा आ रहा हूँ। आइए, हम और आप सैर कर आयें। मुझे आपसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं।"

जब जॉन सेवक मोटर पर आ बैठे, तो बातें होने लगी। राजा साहब ने कहा-“आपका सूरदास तो एक ही दुष्ट निकला। कल से सारे शहर में घूम-घूमकर गाता है और हम दोनों को बदनाम करता है। अंबे गाने में कुशल होते हो है। उसका स्वर बहुत ही लोचदार है। बात-की-बात में हजारों आदमी घेर लेते हैं। जब खूब जमाव हो जाता है, तो यह दुहाई मचाता है और हम दोनों को बदनाम करता है।"

जॉन सेवक-"अभी चर्च में आ पहुँचा था। बस, वहीं दुहाई देता था। प्रोफेसर सिमियन, मि० नीलमणि आदि महापुरुषों को तो आप जानते ही हैं, उसे और भी उकसा रहे हैं। शायद अभी वहीं खड़ा हो।”

महेंद्रकुमार-"मिस्टर क्लार्क से तो कोई बातचीत नहीं हुई?"

जॉन सेवक-"थे तो वह भी, उनकी सलाह है कि अंधे को पागलखाने भेज दिया जाय। मैं मना न करता तो वह उसी वक्त थानेदार को लिखते।"

"महेंद्रकुमार-"आपने बहुत अच्छा किया, उन्हें मना कर दिया। उसे पागलखाने या जेलखाने भेज देना आसान है, लेकिन जनता को यह विश्वास दिलाना कठिन है कि उसके साथ अन्याय नहीं किया गया। मुझे तो उसकी दुहाई-तिहाई की परवा न होती; पर आप जानते हैं, हमारे कितने दुश्मन हैं। अगर उसका यही ढंग रहा, तो दस-पाँच दिनों में हम सारे शहर में नक्कू बन जायँगे।"

जॉन सेवक-"अधिकार और बदनामी का तो चोली-दामन का साथ है। इसकी चिंता न कीजिए। मुझे तो यह अफसास है कि मैंने मुहल्लेवालों को काबू में लाने के