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रंगभूमि


करने के संदेह में गिरफ्तार किये गये हैं, तब से इसी दौड़-धूप में हैं कि आपको यहाँ से निकाल ले जायँ। यह जगह आप-जैसे धर्मपरायण, निर्भीक और स्वाधीन पुरुषों के लिए उपयुक्त नहीं है। यहाँ उसी का निबाह है, जो पल्ले दर्जे का घाघ, कपटी, पाखंडी और दुरात्मा हो, अपना काम निकालने के लिए बुरे-से-बुरा काम करने से भी न हिचके।”

विनयसिंह ने बड़े गर्व से उत्तर दिया-"अगर तुम्हारी बातें अक्षरशः सत्य हो, तो भी मैं कोई ऐसा काम न करूँगा, जिससे रियासत को बदनामी हो। मुझे अपने भाइयों के साथ में विष का प्याला पीना मंजूर है; पर रोकर उनको संकट में डालना मंजूर नहीं। इस राज्य को हम लोगों ने सदैव गौरव की दृष्टि से देखा है, महाराजा साहब को आज भी हम उसी श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। वह उन्हीं साँगा और प्रताप के वंशज हैं, जिन्होंने हिन्दू-जाति की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। हम महाराजा को अपना रक्षक, अपना हितैषी, क्षत्रिय-कुल-तिलक समझते हैं। उनके कर्मचारी सब हमारे भाई-बन्द हैं। फिर यहाँ की अदालत पर क्यों न विश्वास करें? वे हमारे साथ अन्याय भी करें, तो भी हम जबान न खोलेंगे। राज्य पर दोषारोपण करके हम अपने को उस महान् वस्तु के अयोग्य सिद्ध करते हैं, जो हमारे जीवन का लक्ष्य और इष्ट है।"

"धोखा खाइएगा।"

"इसकी कोई चिन्ता नहीं।"

"मेरे सिर से कलंक कैसे उतरेगा?"

"अपने सत्कार्यों से।"

वीरपाल समझ गया कि यह अपने सिद्धान्त से विचलित न होंगे। पाँचो आदर्मी घोड़ों पर सवार हो गये. और एक क्षण में हेमन्त के घने कुहिर ने उन्हें अपने परदे में छिपा लिया। घोड़ों की टाप की ध्वनि कुछ देर तक कानों में आती रही, फिर वह भी गायब हो गई।

अब विनय सोचने लगे-प्रातःकाल जब लोग यह सेंद देखेंगे, तो दिल में क्या खयाल करेंगे? उन्हें निश्चय हो जायगा कि मैं डाकुओं से मिला हुआ हूँ और गुप्त रीति से भागने की चेष्टा कर रहा हूँ। लेकिन नहीं, जब देखेंगे कि मैं भागने का अवसर पाकर भी न भागा, तो उनका दिल मेरी तरफ से साफ हो जायगा। यह सोचते हुए उन्होंने पत्थर के टुकड़े चुनकर सेंद को बन्द करना शुरू किया। उनके पास केवल एक हल्का-सा कम्बल था, और हेमन्त की तुषार-सिक्त वायु इस सूराख की राह से सन-सन आ रही थी। खुले मैदान में शायद उन्हें कभी इतनी ठण्ड न लगी थी। हवा सुई की भाँति रोम-रोम में चुभ रही थी। सेंद बन्द करने के बाद वह लेट गये।

प्रातःकाल जेलखाने में हलचल मच गई। नाजिम, इलाकेदार, सभी घटनास्थल पर पहुँच गये। तहकीकात होने लगी। विनयसिंह ने सम्पूर्ण वृत्तांत कह सुनाया! अधिकाकारियों को बड़ी चिन्ता हुई कि कहीं वे ही डाकू इन्हें निकाल न ले जाय। उनके हाथों