यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१७३
रंगभूमि

मिसेज सेवक ने सूखी हँसी हँसकर कहा—“अभी मेरी वापसी की मुलाकात आपके जिम्मे बाकी है।"

रानी—“आप मुझसे मिलने आई ही कब? पहले भी सोफिया से मिलने आई थीं, और आज भी। मैं तो आज आपको एक खत लिखनेवाली थी, अगर बुरा न मानिए, तो एक बात पूछूँ?"

मिसेज सेवक—"पूछिए, बुरा क्यों मानूँगी।"

रानी-“मिस सोफिया की उम्र तो ज्यादा हो गई, आपने उसकी शादी की कोई फिक्र की या नहीं? अब तो उसका जितनी जल्दी विवाह हो जाय, उतना ही अच्छा। आप लोगों में लड़कियाँ बहुत सयानी होने पर ब्याही जाती हैं।"

मिसेज सेबक-"इसकी शादी कब की हो गई होती, कई अँगरेज बेतरह पीछे पड़े, लेकिन यह राजी ही नहीं होती। इसे धर्म-ग्रंथों से इतनी रुचि है कि विवाह को जंजाल समझती है। आजकल जिलाधीश मिस्टर क्लार्क के पैगाम आ रहे हैं। देखूँ, अब भी राजी होती है या नहीं। आज मैं उसे ले जाने ही के इरादे से आई हूँ। मैं हिंदोस्तानी ईसाइयों से नाते नहीं जोड़ना चाहती। उनका रहन-सहन मुझे पसंद नहीं है, और सोफी-जैसी सुशिक्षिता लड़की के लिए कोई अँगरेज पति मिलने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती।"

जाह्नवी-“मेरे विचार में विवाह सदैव अपने स्त्रजातियों में करना चाहिए। योरपियन लोग हिंदुस्थानी ईसाइयों का बहुत आदर नहीं करते, और अनमेल विवाहों का परिणाम अच्छा नहीं होता।"

मिसेज सेवक—(गर्व के साथ) “ऐसा कोई योरपियन नहीं है, जो मेरे खानदान में विवाह करना मर्यादा के विरुद्ध समझे। हम और वे एक हैं। हम और वे एक ही खुदा को मानते हैं, एक ही गिरजा में प्रार्थना करते हैं और एक ही नबी के अनुचर हैं। हमारा और उनका रहन-सहन, खान-पान, रीति-व्यवहार एक है। यहाँ अँगरेजों के समाज में, क्लब में, दावतों में हमारा एक-सा सम्मान होता है। अभी तीन-चार दिन हुए, लड़कियों को इनाम देने का जलसा था। मिस्टर क्लार्क ने खुद मुझे उस जलसे का प्रधान बनाया और मैंने ही इनाम बाँटे। किसी हिंदू या मुसलमान लेडी को यह सम्मान न प्राप्त हो सकता था।"

रानी-"हिंदू या मुसलमान, जिन्हें कुछ भी अपने जातीय गौरव का खयाल है, अँगरेजों के साथ मिलना-जुलना अपने लिए सम्मान की बात नहीं समझते। यहाँ तक कि हिंदुओं में जो लोग अँगरेजों से खान-पान रखते हैं, उन्हें लोग अपमान की दृष्टि से देखते हैं, शादी-विवाह का तो कहना ही क्या! राजनीतिक प्रभुत्व की बात और है। डाकुओं का एक दल विद्वानों की एक सभा को बहुत आसानी से परास्त कर सकता है। लेकिन इससे विद्वानों का महत्त्व कुछ कम नहीं होता। प्रत्येक हिंदू जानता है कि मसीह बौद्धकाल में यहाँ आये थे, यहीं उनकी शिक्षा हुई थी और जो ज्ञान उन्होंने यहाँ प्राप्त किया, उसी का पच्छिम में प्रचार किया। फिर कैसे हो सकता है कि हिंदू अँगरेजों को श्रेष्ठ समझे?”