वह इसी चिंता और ग्लानि में बैठी हुई थी कि रानीजी कमरे में आई। सोफिया उठ खड़ी हुई और अपनी आँखें छिपाने के लिए जमीन की ओर ताकने लगी। किंतु आँसू पी जाना आसान नहीं है। रानी ने कठोर स्वर में पूछा- "सोफी, क्यों रोती हो?"
जब हम अपनी भूल पर लजित होते हैं, तो यथार्थ बात आप-ही-आप हमारे मुँह से निकल पड़ती है। सोफी हिचकती हुई बोली-"जी, कुछ नहीं...मुझसे एक अपराध हो गया है, आपसे क्षमा माँगती हूँ।"
रानी ने और भी तीव्र स्वर में पूछा-"क्या बात है?"
सोफी-"आज जब आप सैर करने गई थीं, तो मैं आपके कमरे में चली गाई थी।"
रानी-"क्या काम था?"
सोफी लज्जा से आरक्त होकर बोली-“मैंने आपकी कोई चीज नहीं छुई।"
रानी-"मैं तुम्हें इतना नीच नहीं समझती।"
सोफी-“एक पत्र देखना था।”
रानी-"विनयसिंह का?"
सोफिया ने सिर झुका लिया। वह अपनी दृष्टि में स्वयं इतनी पतित हो गई थी कि जी चाहता था, जमीन फट जाती और मैं उसमें समा जाती। रानी ने तिरस्कार के भाव से कहा-"सोफी, तुम मुझे कृतघ्न समझोगी, मगर मैंने तुम्हें अपने घर में रखकर बड़ा भूल की। ऐसी भूल मैंने कभी न की थी। मैं न जानती थी कि तुम आस्तीन का साँप बनोगी। इससे बहुत अच्छा होता कि विनय उसी दिन आग में जल गया होता। तब मुझे इतना दुःख न होता। मैं तुम्हारे आचरण को पहले न समझी। मेरी आँखों पर परदा पड़ा था। तुम जानती हो, मैंने क्यों विनय को इतनी जल्द यहाँ से भगा दिया? तुम्हारे कारण, तुम्हारे प्रेमाघातों से बचाने के लिए। लेकिन अब भी तुम भाग्य की भाँति उसका दामन नहीं छोड़ती। आखिर तुम उससे क्या चाहती हो? तुम्हें मालूम है, तुममे उसका विवाह नहीं हो सकता। अगर मैं हैसियत और कुल-मर्यादा का विचार न करूँ, तो भी तुम्हारे और मारे बीच में धर्म की दीवार खड़ी है। इस प्रेम का फल इसके सिवा और क्या होगा कि तुम अपने माथ उसे भी ले डूबोगी और मेरी चिर-संचित अभिलाषाओं को मिट्टी में मिला दोगी? म विनय को ऐसा मनुष्य बनाना चाहती हूँ, जिस पर समाज को गर्व हो, जिसके हृदय में अनुराग हो, साहस हो, धैर्य हो, जो संकों के सामने मुँह न मोड़े, जो सेवा के इंतु सदैव सिर को हथेली पर लिये रहे, जिसमें विलासिता का लेश भी न हो, जो धर्म और अपने को मिटा दे। मैं उसे सपूत बेटा, निश्छल मित्र और निस्वार्थ सेवक बनाना चाहती हूँ। मुझे उसके विवाह की लालसा नहीं, अपने पोतों को गोद में खेलाने की अनिवाया नहीं। देश में आत्मसेत्री पुरुषों और संतान-सेवी माताओं का अभाव नहीं है। वरती उनके बोझ से दबी जाती है। मैं अपने बेटे को सच्चा राजपूत