जॉन सेवक--(स्त्री से) "तुम कल सुबह चली जाओ, रानी से भेंट भी हो जायगी और सोफी को भी लेती आओगी।”
मिसेज सेवक--"अब जाना ही पड़ेगा। जी तो नहीं चाहता; पर जाऊँगी। उसी की टेक रहे!"
* * *
सूरदास संध्या-समय घर आया, और सब समाचार सुने, तो नायकराम से बोला- "तुमने मेरी जमीन साहब को दे दी?"
नायकराम-"मैंने क्यों दी? मुझसे वास्ता?”
सूरदास-"मैं तो तुम्हीं को सब कुछ समझता था और तुम्हारे ही बल पर कुदता था; पर आज तुमने भी साथ छोड़ दिया। अच्छी बात है। मेरी भूल थी कि तुम्हारे बल पर फूला हुआ था। यह उसी की सजा है। अब न्याय के बल पर लड़गा, भगवान् ही का भरोसा करूँगा।"
नायकराम-"बजरंगी, जरा भैरो को बुला लो, इन्हें सब बातें समझा दे। मैं इनमे कहाँ तक मगज लगाऊँ।"
बजरंगी-"भैरो को क्यों बुला लूँ, क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता। भैरो को इतना सिर चढ़ा दिया, इसी से तो उसे घमंड हो गया है।"
यह कहकर बजरंगी ने जॉन सेवक की सारी आयोजनाएँ कुछ बढ़ा-घटाकर बयान कर दी और बोला-"बताओ, जब कारखाने से सबका फायदा है, तो हम साहब से क्यों लड़ें?”
सूरदास-"तुम्हें विश्वास हो गया कि सबका फायदा होगा?"
बजरंगी-"हाँ, हो गया। मानने-लायक बात होती है, तो मानी ही जाती है।"
सूरदास-"कल तो तुम लोग जमीन के पीछे जान देने पर तैयार थे, मुझ पर संदेह कर रहे थे कि मैंने साहब से मेल कर लिया, आज साहब के एक ही चकमे में पानी हो गये?"
बजरंगी-"अब तक किसी ने ये सब बातें इतनी सफाई से न समझाई थीं। कारखाने से सारे मुहल्ले का, सारे शहर का, फायदा है। मजूरों की मजूरी बढ़ेगी, दूकानदारों की बिक्री बढ़ेगी। तो अब हमें तो झगड़ा नहीं है। तुमको भी हम यही सलाह देते हैं कि अच्छे दाम मिल रहे हैं, जमीन दे डालो। यो न दोगे, तो जाबते से ले ली जायगी। इससे क्या फायदा?"
सूरदास-अधर्म और अविचार कितना बढ़ जायगा, यह भी मालूम है?"
बजरंगी-"धन से तो अधर्म होता ही है, पर धन को कोई छोड़ नहीं देता?"
सूरदास-"तो अब तुम लोग मेरा साथ न दोगे? मत दो। जिधर न्याय है, उधर किसी की मदद की इतनी जरूरत भी नहीं है। मेरी चीज है, बाप-दादों की कमाई है,