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रंगभूमि


कोई बालक नहीं है कि आर उनकी ओर से सिपारिस कर! बालक होते, तो दूसरी बात थी, तब हम लोग आप ही को उलाहना देते। वह पढ़े-लिखे आदमी हैं, मूछ-दाढ़ी निकल आई है, उन्हें खुद आकर पण्डाजी से कहना-सुनना चाहिए।"

नायकराम—"हाँ, यह बात पक्की है। जब तक वह थूककर न चाटेंगे, मेरे दिल से मलाल न निकलेगा।"

जॉन सेवक—"तो तुम समझते हो कि दाढ़ी-मूछ आ जाने से बुद्धि भी आ जाती है? क्या ऐसे आदमी नहीं देखे हैं, जिनके बाल पक गये हैं, दाँत टूट गये हैं, और अभी तक अक्ल नहीं आई? प्रभु सेवक अगर बुद्धू न होता, तो इतने आदमियों के बीच में और पण्डाजी-जैसे पहलवान पर हाथ न उठाता। उसे तुम कितना ही दबाओ, पर मुआफी न माँगेगा। रही जमीन की बात, अगर तुन लोगों की मरजी है कि मैं इस मुआमले को दबा रहने दूँ, तो यही सही। पर शायद अभी तक तुम लोगों ने इस समस्या पर विचार नहीं किया, नहीं तो कभी विरोध न करते। बतलाइए पण्डाजी, आपको क्या शंका है?”

नायकराम—"भैरो, इसका जवाब दो। अब तो साहब ने तुमको कायल कर दिया!"

भैरो—"कायल क्या कर दिया, साहब यही कहते है न कि छोटे साहब को अक्कल नहीं है; तो वह कुएँ में क्यों नहीं कूद पड़ते, अपने दांतों ने अपना हाथ क्यों नहीं काट लेते? ऐसे आदमियों को कोई कैसे पागल समझ ले?"

जॉन सेवक—"जो आदमी यह न समझे कि किस मौके पर कौन काम करना चाहिए, किस मौके पर कौन बात करनी चाहिए, वह पागल नहीं, तो और क्या है?"

नायकराम—"साहब, उन्हें मैं पागल तो किसी तरह न मानूँगा। हाँ, आपका मुँह देख के उनसे बैर न बढ़ाऊँगा। आपकी नम्रता ने मेरा सिर झुका दिया। सच कहता हूँ, आ की भलमनसी और सराफत ने मेरा गुस्सा ठंडा कर दिया। नहीं तो मेरे दिल में न जाने कितना गुबार भरा हुआ था। अगर आप थोड़ी देर और न आते, तो आज शाम तक छोटे साहब अस्पताल में होते। आज तक कभी मेरी पीठ में धूल नहीं लगी। जिंदगी में पहली बार मेरा इतना अपमान हुआ और पहली बार मैंने क्षमा करना भी सीखा। यह आपकी बुद्धि की बरकत है। मैं आपकी खोपड़ी को मान गया। अब साहब की दूसरी बात का जवाब दो बजरंगी!”

बजरंगी—“उसमें अब काहे का सवाल-जवाब। साहब ने तो कह दिया कि मैं उसका नाम न लूँगा। बस, झगड़ा मिट गया।"

जॉन सेवक—'लेकिन अगर उस जमीन के मेरे हाथ में आने से तुम्हारा सोलहों आने फायदा हो, तो भी तुम हमें न लेने दोगे?"

बजरंगी—"हमारा फायदा क्या होगा, हम तो मिट्टी में मिल जयँगे।"

जॉन सेवक—"मैं तो दिखा दूँगा कि यह तुम्हारा भ्रम है। बतलाओ, तुम्हें क्या एतराज है?"