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रंगभूमि

भैरो—“यह सुभागी को बहका ले जाने का जरीबाना है।"

जगधर—"सच बताओ, ये रुपये कहाँ मिले?"

भैरो—"उसी झोपड़े में। बड़े जतन से धरन की आड़ में रब हुए थे। पाजी रोज राहगीरों को ठग-टगकर पैसे लाता था, और इसी थैली में रखता था। मैंने गिने हैं। पाँच सौ रुपये से ऊपर हैं। न जाने कैसे इतने रुपये जमा हो गये! बचा को इन्हीं रुपयों की गरमी थी। अब गरमी निकल गई। अब देखूँ किस बल पर उछलते हैं। बिरादरी को भोज-भात देने का सामान हो गया। नहीं तो, इस बचत इतने रुपये कहाँ मिलते? आजकल तो देखते ही हो, बल्लमटेरों के मारे बिकरी कितनी मंदी है।"

जगधर— "मेरी तो सलाह है कि रुपये उसे लौटा दो। बड़ी मसकत की कमाई है। हजम न होगी।”

जगधर दिल का खोटा आदमी नहीं था; पर इस समय उसने यह सलाह उसे नेक-नीयती से नहीं, हसद से दी थी। उसे यह असह्य था कि भैरो के हाथ इतने रुपये लग जायँ। भैरो आधे रुपये उसे देता, तो शायद उसे तस्कीन हो जाती पर भैरो से यह आशा न की जा सकती थी। बेपरवाई से बोला--"मुझे अच्छी तरह हजम हो जायगी। हाथ में आये हुए रुपये को नहीं लौटा सकता। उसने तो भीख ही माँगकर जमा किये हैं, गेहूँ तो नहीं तौला था।"

जगधर--"पुलिस सब खा जायगी।"

भैरो-"सूरे पुलिस में न जायगा। रो-धोकर चुप हो रहेगा।"

जगधर-"गरीब की हाय बड़ी जान-लेवा होती है।”

भैरौ-"वह गरीब है! अंधा होने ही से गरीब हो गया? जो आदमी दूसरों की औरतों पर डोरे डाले, जिसके पास सैकड़ों रुपये जमा हों, जो दूसरों को रुपये उधार देता हो बह गरीब है? गरीब जो कहो, तो हम-तुम है। घर में ढूँढ आओ, एक पूरा रुपया न निकलेगा। ऐसे पापियों को गरीब नहीं कहते। अब भी मेरे दिल का काँटा नहीं निकला। जब तक उसे रोते न देखूँगा, यह काँटा न निकलेगा। जिसने मेरी आबरू बिगाड़ दी, उसके साथ जो चाहे करूँ, मुझे पान नहीं लग सकता।"

जगधर का मन आज खोंचा लेकर गलियों का चकर लगाने में न लगा। छाती पर साँप लोट रहा था--"इसे दम-के-दम में इतने रुपये मिल गये, अब मौज उड़ा देगा। तकदीर इस तरह स्तुलती है। यहाँ कभी पड़ा यू पैसा भी न मिला। पाप पुन्न की कोई बात नहीं। मैं ही कौन दिन-भर पुन्न किया करता हूँ। दमड़ी-छदाम कोड़ियों के लिए टेनी मारता हूँ! बाट खोटे रखता हूँ, तेल की मिठाई को घी कहकर बचता हूँ। ईमान गँवाने पर भी हाथ कुछ नहीं लगता। जानता हूँ, यह बुरा काम है; पर बाल-बच्चों को पालना भी तो जरूरी है। इसने ईमान खोया, तो कुछ लेकर खोया, गुनाह बेलजत नहीं रहा। अव दो-तीन दुकानों का और ठेका ले लेगा। ऐसा ही कोई माल मेरे हाथ भी पड़ जाता, तो जिंदगानी सुफल हो जाती।"