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रंगभूमि


घर रख, यहाँ दूध-घी के ऐसे भूखे नहीं हैं। यह जमीन अपनी हुई जाती है; जितने जानवर चाहूँगी, पाल लूँगी। मगर तुझसे कहे देती हूँ कि तू कल से घर में न बैठने पायेगी। पुलिस की रपट तो साहब के हाथ में है; पर हमें भी खुदा ने ऐसा इल्म दिया है कि जहाँ एक नक्श लिखकर दम किया कि जिन्नात अपना काम करने लगे। जम हमारे मियाँ जिंदा थे, तो एक बार पुलिस के एक बड़े अँगरेज हाकिम से कुछ हुजत हो गई। बोला; हम तुमको निकाल देंगे। मियाँ ने कहा, हमें निकाल दोगे, तो तुम भी आराम से न बैठोगे। मियाँ ने आकर मुझसे कहा। मैंने उसी रात को सुलेमानी नक्श लिख कर दम किया, उसकी मेम का पूरा हमल गिर गया। दौड़ा हुआ आया, खुशामदे की, पैरों पर गिरा, मियों से कसूर मूआफ कराया, तब मेम की जान बची। क्यों रकिया तुम्हें याद है न?”

रकिया-"याद क्यों नहीं है, मैंने ही तो दुआ पढ़ी थी। साहब रात को दरवाजे पर पुकारता था।"

जैनब-"हम अपनी तरफ से किसी को बुराई नहीं चाहते। लेकिन जब जान पर आ बनती है, तो सबक भी ऐसा दे देते हैं कि जिंदगी भर न भूले। अभी अपने पीर से कह दें, तो नुदा जाने क्या गजब ढायें। तुम्हें याद है रकिया, एक अहोर ने उन्हें दूब में पानी मिलाकर दिया था। उनकी जबान से इतना ही निकला-'जा, तुझसे खुदा समझें।' अहीर ने घर आकर देखा, तो उसकी २००) की भैंस मर गई थी।"

जमुनी ने ये बातें सुनीं, तो होश उड़ गये। अन्य स्त्रियों की भाँति वह भी थाना, पुलिस, कचहरी ओर दरबार की अपेक्षा भूत पिशाचों से ज्यादा डरी रहती थी। पास-पड़ोस में पिशाच-लीला देखने के अवसर आये-दिन मिलते ही नइते थे। मुल्लाओं के यंत्र-मंत्र कहीं ज्यादा लागू होते हैं, यह भी मानती थी। जैनव बेगम ने उसकी पिशाच-भीरुता को लक्षित करके अपनी विषम चातुरी का परिचय दिया। जमुनी नयभीत होकर बोली- "नहीं बेगम साहब, आपको भी भगवान् ने बाल-बच्चे दिये हैं, ऐला जुलुम न कीजिएगा, नहीं तो मर जाऊँगी।”

जैनब-"यह भी न करें, वह भी न करें, तो इन्नत कैमे रहे? कल को तेरा अहेर फिर लट्ठ लेकर आ पहुँचे तो? खुदा ने चाहा, तो अब वह लट्ठ उठाने लायक रह हो न जायगा।"

जमुनी थरथराकर पैरों पर गिर पड़ी, और बोली-“बोबी, जो हुकुम हो उसके लिए हाजिर हूँ।"

जैनब ने चोट-पर-चोट लगाई और जमुनी के बहुत रोने-गिड़गिड़ाने पर २५) ले कर जिन्नात से उसे अभय-दान दिया। घर गई, रुपये लाकर दिये ओर पैंरो पर गिरी; मगर बजरंगी से यह बात न कही। वह चली गई, तो जैनब ने हँसकर कहा-"खुदा देता है, तो छप्पर फाड़कर देता है। इसका तो सान-गुमान भी न था। तुम बेसब्र हो जाती हो, नहीं तो मैंने कुछ-न-कुछ और ऐंठा होता। सवार को चाहिए बाग हमेशा कड़ी रखे।"

सहसा साबिर ने आकर जैनब से कहा-"आपकों अब्बा बुलाते हैं।" जैनब वहाँ