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आधारके लोक और अंग
 

तथा उसके फलोंसे सर्वथा अलिप्त है। मनुष्य जबतक अविद्यामें है तबतक वह अपरा प्रकृतिके वशमें है, परन्तु आध्यात्मिक विकासके होनेसे वह परा प्रकृतिको जान पाता है और उसके साथ युक्त होनेका यत्न करता है। वह परा प्रकृतिकी ओर आरोहण कर सकता है और परा प्रकृति उसमें अवतरण कर सकती है—एवंविध जो आरोहण और अवतरण है वह मन-बुद्धि, प्राण और शरीरको पलट कर दिव्य बना सकता है।

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विज्ञानका किसी प्रकार अवतरण हो सके, इसके पूर्व यह आवश्यक है कि अधिमानस तक पहुँचकर उसे नीचे उतारा जाय—क्योंकि अधिमानस ही वह रास्ता है जिससे कोई मन-बुद्धिसे निकलकर विज्ञानको प्राप्त हो सकता है।

अधिमानस से ही सब पदार्थोंके सृष्टिकारक सत्स्वरूपकी ये विभिन्न व्यवस्थाएँ निकलती हैं। अधिमानस से वे अन्तर्ज्ञान में आती हैं और वहाँसे प्रबुद्ध मानस और ऊर्ध्व-मानसको प्राप्त होती हैं और वहाँ वे हमारी सामान्य बुद्धिके लिये व्यवस्थित होती हैं। परन्तु ऊपरसे नीचे आनेमें स्थानस्थानान्तर-क्रमसे उनकी शक्ति और निश्चया-

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