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आधारके लोक और अंग
मनुष्य अपने-आपको नहीं जानते और अपनी सत्ताके विभिन्न अंशोंको एक दूसरेसे पृथक्रूपमें देखना उन्होंने नहीं सीखा है; इन सबको वे एक अन्तःकरण करके ही जानते हैं, क्योंकि मनकी अनुभूति और समझसे वे इन्हें समझते या अनुभव करते हैं । इसीसे मनुष्य अपनी ही हालतों और कार्योंको नहीं समझ पाते और जो कुछ समझते भी हैं सो केवल ऊपरी हालत और कार्यको समझते
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