पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/७९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह / 79
 


पर जब कृष्ण ने उसे बतलाया कि सुभद्रा उसकी बहन है तो अर्जुन उनसे इस बात का अनुरोध करने लगा कि उसका विवाह सुभद्रा के साथ होना चाहिए। कृष्ण भी चाहते थे कि यह संबंध हो जाये, क्योंकि वह जानते थे कि अर्जुन अपने समय का प्रसिद्ध वीर है, इससे संबंध जोड़ना अपने को गौरवान्वित करना है। पर उन्हें इस बात का भय था कि कदाचित् उनके भाई-बंधु इसे स्वीकार न करे क्योंकि अर्जुन तथा अन्य पाण्डवों के जन्म के विषय में उस समय लोगों में बहुत चर्चा थी। इसलिए कृष्ण ने इन बातों की चिन्ता कर अर्जुन से कहा कि मैं निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि स्वयंवर में सुभद्रा तुम्हीं को वरेगी। क्षत्रियों में गन्धर्व विवाह की रीति है और योद्धाओं के लिए यह बात प्रतिष्ठा की समझी जाती है कि वह विवाह करने की इच्छा से अपनी प्रिया को अपहृत कर लें। अतएव यदि तुम सुभद्रा पर ऐसे मोहित हो तो तुम्हारे लिए इससे उत्तम कोई और उपाय नहीं कि तुम उसको बलात् ले जाओ। फिर निश्चय ही तुम्हारा विवाह[] उससे होगा। तत्पश्चात् निश्चय हुआ कि इस बारे में पहले युधिष्ठिर की आज्ञा ले ली जाय। इसलिए एक दूत उनके पास भेजा गया। जब वहाँ से आज्ञा मिल गई तो एक दिन अर्जुन रथ लेकर सुभद्रा के रास्ते में जा बैठा । वह उसके पास से निकली तो उसको बलात् उठाकर रथ में बैठा लिया और वहाँ से चले गये। जब सुभद्रा की सहेलियों ने इसकी खबर दरबार मे पहुँचाई तो सब लोग आग-बबूला हो गए। फिर शिशुपाल ने शंख बजाया जिससे सारे यादव और भोज शस्त्र धारण करके इकट्ठे हुए। जब उन सबने सुना कि अर्जुन उनकी राजकुमारी को बलपूर्वक हर ले गया तो उनकी आँखों से लहू टपकने लगा और सब बदला लेने के लिए तत्पर दीख पड़ने लगे। इतने में बलराम आ पहुँचे और पूछा कि आप सब लोग ऐसे उत्तेजित क्यों दीख पड़ते हैं, किन्तु कृष्णचन्द्र चुपचाप बैठे हैं। फिर उनसे इसका कारण पूछा, "हे कृष्ण, तुम चुप क्यों हो? तुम्हारे ही कारण तो हम सबने अर्जुन का इतना सम्मान किया और आगत का स्वागत किया। अब प्रकट हुआ कि वह इस सम्मान और स्वागत के योग्य न था। उसने हमारा बड़ा अपमान किया। हमारी बहन के साथ उसने जो बलात्कार किया है वह सह्य नहीं। यह कैसे हो सकता है कि हम इस अपमान को चुपचाप सहन कर लें! हम इसका बदला लेंगे और जब तक पृथिवी को कौरवों से शून्य नहीं कर लेंगे, दम नहीं लेंगे।"

जब चारों ओर से यही आवाज गूँज उठी और यादव मरने-मारने पर बद्धपरिकर हो गए तो कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा और बोले, "हे भाइयो, आपका यह विचार ठीक नहीं कि अर्जुन ने हमारा अपमान किया। मेरी समझ में तो उसने हमारी प्रतिष्ठा ही बढ़ाई है। वह जानता था कि हमारे वंश में बदला लेकर लड़की देना निषिद्ध है। स्वयंवर में सफलता की उसे पूरी आशा नहीं थी। उसके पद और वीरता से यह संभव नहीं था कि वह आपसे कन्यादान माँगता। अतएव उसने क्षत्रियों की चाल चली। जैसे सुभद्रा परम रूपवती और गुण-सम्पन्ना

 

  1. याद रहे कि कृष्ण का विवाह रुक्मिणी के साथ इसी तरह हुआ था। इससे जान पड़ता है कि उस समय यह चलन क्षत्रियों में निन्दनीय नहीं गिना जाता था, क्योंकि जो कोई किसी कन्या को भगा ले जाता था वह बिवाह की इच्छा से ही ले जाता था। विवाह का संस्कार किए बिना उसके पास भी नहीं जाता था।