कृष्ण और बलराम का हाल सुनकर कंस को लगा कि अब मेरा अन्त आ पहुँचा। उसे अब निश्चय हो गया कि जो अगमवाणी देवकी के विवाह के समय हुई थी उसके पूरा होने का समय अब आ पहुँचा है। दुष्ट कंस! तू किस नींद में सो रहा है। तेरे क्रूर हाथ से सृष्टि को छुड़ाने वाला, तुझसे बदला लेने वाला अब आ पहुँचा। तेरी सारी युक्तियाँ उसका बाल बाँका करने में निष्फल हुईं। यद्यपि उसके वध करने की इच्छा से तूने सैकड़ों अबोध बालकों का वध कर डाला पर जिसको बचाना मंजूर था, उसे विधाता ने बचा ही लिया।
बादशाही महलों में न पलकर प्रकृति के महलों में उसने परवरिश पाई और जंगली जानवरो के पड़ौस में प्रकृति ने उसे उन कठोर बातों की शिक्षा दी जो दुष्टों के वध करने के लिए बहुत आवश्यक है। सारी बाल्यावस्था में वह यही शिक्षा पाता रहा कि अपने शत्रु पर दया करना धर्म नहीं। समय ने उसको दुष्टों के लिए निर्दयी बनाकर उससे वह काम कराया जिससे बचने के लिए उसके सारे भाई-बहनों का वध हुआ था। पाप और अहंकार के वश होकर कंस को कभी विचार भी नही हुआ कि जिसको परमात्मा बचाना चाहता है उसे दुनिया की कोई शक्ति नहीं मार सकती।
सारांश यह कि कंस अब उनके वध को तैयार हुआ और अब की यह तदबीर निकाली कि चतुर्दशी के दिन जो दंगल हुआ करता है, उसमें कृष्ण और बलराम को न्यौता दिया और यादव वंश के एक माननीय सरदार अक्रूर को उनको लेने भेजा। विष्णुपुराण कहता है कि चलती बार कंस ने अक्रूर से अपना भीतरी अभिप्राय कह दिया था। यह सच हो या न हो, पर अक्रूर जिस समय वृन्दावन में पहुँचा और उसकी दृष्टि दोनों भाइयों पर पड़ी तो वह उनके रूप पर मोहित हो गया और उन पर दया दिखाकर उन्हें यथार्थ भेद बता दिया। कंस से लोग ऐसे पीड़ित थे कि कदाचित् अक्रूर ने कृष्ण और बलराम को कंस के विपरीत बहका दिया हो तो इसमें संदेह नहीं। पर फिर भी यह भेद जानकर उनके हृदय में भय न समाया और गोपो को साथ लेकर वे अक्रूर के साथ मथुरा चले और सूर्यास्त के बाद वहाँ पहुँचे। आते ही पहले कंस के धोबी से उसकी मुठभेड़ हुई। वह कुछ क्षुद्रता से पेश आया यहाँ तक कि विवाद[१] बढ़ गया और वह उनके हाथ से मारा गया। इसके पश्चात् उनका ऐसा प्रभाव हो गया कि जिस वस्तु की उन्होंने इच्छा की, वह उन्हें मिलती गई।
उधर कंस ने यह आज्ञा दी कि जिस समय कृष्ण और बलराम दंगल में पैर रखें उसी समय एक मस्त हाथी उनके ऊपर छोड़ दिया जाये। यदि इस हाथी से वे बच निकलें तो फिर राज्य के दो बड़े पहलवानों से उनका मल्लयुद्ध कराया जाय। दूसरे दिन ऐसा ही हुआ। जब दोनों भाई दंगल में आए तो एक उन्मत्त हाथी उन पर छोड़ा गया। उन्होंने बड़ी शूरता से उसका मुकाबला किया और उसको मारकर आगे बढ़े। फिर दो बड़े बलवान पहलवान उनसे भिड़ने के लिए सामने आए। दंगल के चारों ओर भीड़ हो रही थी। स्वयं महाराज कंस एक मंडप के नीचे विराजमान थे। रानियाँ अलग एक मंडप में से तमाशा देख रही थीं। बाकी सारी सेना
- ↑ कहते है कि कृष्ण, बलराम आदि सैर कर रहे थे। उन्होंने कंस के दरबार में जाने के लिए धोबी से वस्त्र माँगे और इसी पर विवाद बढ़ा