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64/ यागिराज श्रीकृष्ण
 


योवन काल है । आकाश मंडल मेघो से घिर रहा है । मेघों का रह-रहकर मधुर स्वर से गरज जाना कानों को कैसा भला लगता है। कभी-कभी बिजली ऐसे वेग से इधर से उधर तड़प जाती है जिससे सारी पृथ्वी ज्योतिर्मयी हो जाती है । मेघ घीरे-धीरे बरस रहा है । पक्षिगण वृक्षों पर कलोल कर रहे हैं और उन्मत्त होकर पानी में स्नान कर रहे है । पत्तो पर पानी की बूंदें मोती सी दीख पड़ती हैं, और हाथ लगाते ही चूर-चूर हो जाती है । वायु के झोकों से वृक्ष जिस समय झुमने लगते हैं और उनसे पानी टप-टप चूने लगता है तो जान पड़ता है मानो अपनी प्रिया की चाह में आँस बहा रहे है । उनके आँसुओ की बँदें जिन पर पड़ती हैं उनके अशान्त तथा संतप्त हृदय को ठंडक पहुँचाती है । ऐसे सुहावने समय में प्रकृति मनुष्य के चित्त को चचल कर देती है । दुराचारी मनुष्य अपनी अपवित्रता में उन्मत्त प्रकृति देवी के इस पवित्र सौन्दर्य पर हस्तक्षेप करने लगते हैं, पर लज्जावश मनुष्य दृष्टि से छिपकर केवल कुछ मित्रों में ही ऐसा करने पाते हैं । परन्तु जनसाधारण का हृदय अपनी सरलता मे यों ही उछला पड़ता है । ऐसे सुहावने समय में प्रत्येक मनुष्य की कवित्व शक्ति उत्साहित हो गाने-बजाने की ओर जाती है । गोपों की छोटी-सी मंडली अपनी प्राकृतिक फुलवाड़ी में आनन्द मंगल से गाने-बजाने में मग्न है । बालक कृष्ण को वंशी बजाने की बड़ी चाह है । उसने इस बाजे में प्रवीणता भी प्राप्त की है । जब वह वंशी बजाता है तो उसके चारो ओर भीड़ लग जाती है । गोपों के लड़के और लड़कियाँ वृत्त बनाकर उसके चारों ओर खड़े हैं और नाचना तथा गाना आरम्भ करते है । इस मडली में जिसे देखिये वही इस रंग में रॅगा हुआ दीख रहा है । ऐसे समय में कृष्ण भी वशी बजाते-बजाते नाचने लगते है । बस, यही रासलीला है और यही रासलीला की विधि है।
पाठक वृन्द ! यथार्थ तो बस इतना ही था जिस पर हमारे पौराणिक कवियो ने ऐसी-ऐसी युक्तियाँ लगाई, इतना ताना-बाना बुना कि बस पृथ्वी और आकाश को एक कर दिया । इन तात्रिक कवियों ने कृष्ण का ऐसा चित्र खींचा कि यदि उसका सहस्रांश भी सत्य हो तो हम यह कहने में तनिक भी नहीं सकुचाएँगे कि कृष्ण अपने जीवन के इस काल में बड़े विषयी और कामातर थे। आजकल के पौराणिक विद्वानो पर भी इस बात की पोल खल गई है और वे इन प्रेम प्रहसनों से परमेश्वरीय प्रेम का सार निकालने की चेष्टा करते हैं । पर हमारी समझ में यह चेष्टा वृथा है क्योंकि हम देखते हैं कि विष्णुपुराण में न तो राधा का वर्णन है, न गोपियो के संग कृष्ण की मुँहजोरियों का ही कुछ इशारा है और न चीरहरण की ही कहानी है । हरिवंश और महाभारत में भी इन बातों का कहीं वर्णन नहीं । ये सारी कथाएँ ब्रह्मवैवर्त और भागवत पुराण के कर्ताओं की गढ़न्त है ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण वल्लभाचारी गोसाइयों का बनाया है, जिन्होंने देश में धर्म की आड मे कैसा जाल रच रखा है, और अकथनीय अत्याचार किया करते हैं । उन्हीं के एक चेले नारायण
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1. जैसे पुराणों में एक कहानी है कि राधा की सहेली मानवती का विवाह एक युढ़िया के पुत्र मे हुआ । कृष्ण मानवती को देखकर कामातुर हो गये और अपनी मनोकामना पूरी करने पर तत्पर हुए, जिसके लिए अपनी ईश्वरीय प्रभुता काम में लाकर बुढ़िया के पुत्र का वेप धारण किया और उसके घर में जा घुसे और बुढिया को यह पट्टी पढ़ाई कि रफ बैठ और यदि कोई भी अप नाने देन । यदि बेई तेरे बेटे अक्ष बदलकर आये * का कि में मा बय हूँ अभी तू म मत खेलमा और फुट मसकने के सवाल साद घुटव रख दिसा उस ब्रह्म कै पुरस्क 'मथुरा)