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60/ यागिराज श्रीकृष्ण
 


उनके (कृष्ण के) भक्त हो गए । कृष्ण ने गडरियो, चरवाहों, किसानों, तथा जमीदारों के बीच ऐसे गुण प्रकट किए, जिससे प्रत्येक छोटा-बड़ा उनकी ओर खिचने लगा ।
समय के फेर ने उन्हें महलों के बदले घास-फूस की झोपड़ियों का मुँह दिखलाया । सुन्दर- सुन्दर सवारियो के स्थान में छकड़े की सवारी दी । धनुष-बाण तथा ढाल-तलवार के बदले गाय हॉकने का डंडा हाथों में पकड़ाया । बहुमूल्य सुन्दर-सुन्दर वस्त्राभूषण न देकर तन ढंकने को एक लँगोटी दी । शस्त्रविद्या से युद्ध करने की शिक्षा की अपेक्षा बनैले पशुओ से मल्लयुद्ध करना सिखाया और संगीतशास्त्रज्ञों से शिक्षा न दिला कर देहाती वशी पर संतोष कराया । कुटिल काल ! तू बडा प्रवल है, तेरे हथकण्डों से न कोई बचा है और न बचेगा।
{[gap}}पर यह सब बातें उन्हें ऐसी भाई और उन्होंने अपनी विपत्ति से भी ऐसा लाभ उठाया कि उन सब कठिनाइयों ने उनके स्वाभाविक, सौजन्य तथा जातीय कुलीनता को और भी निर्मल बना दिया ।
उन गोपो की मंडली में किसी-किसी को ही यह मालूम था कि इस चंचल लड़के के वेष में एक राजकुमार पल रहा है, जो समर्थ होकर अपने माता-पिता के शत्रुओं का सिर कुचलेगा और अपने रक्त के प्यासों का लहू पिएगा । जो अपने देश और अपनी मातृभूमि को अत्याचारी शासकों के पजे से छुड़ाकर उनका उद्धार करेगा । फिर विद्या और शास्त्र की शिक्षा पाकर ऊँचे से ऊँचे धर्म का उपदेश करेगा और अन्त मे अपने पीछे अपना शुद्धाचरण छोड़ जायेगा ताकि लाखों वर्ष तक लोग उसको परमेश्वर की पदवी देकर उसका पूजन करें ।
बिचारी यशोदा कृष्ण के ऊधम से ऐसी तंग आ गई थी, कि. उसने हार मानकर एक दिन उनकी कार में रस्सी डाल दी और उस रस्सी को लकड़ी की एक ओखली से बाँध दिया । पर ज्योंही यशोदा ने पीठ मोड़ी, कृष्ण ने रस्सी तोड़ना आरम्भ किया और ऐसा जोर लगाया कि ओखली को भी साथ खींच ले चले । उनके आँगन में अर्जुन के दो वृक्ष थे, ओखली वृक्षा में फंस गई । कहते है, कि जब कृष्ण ने दूसरी बार जोर लगाया तो वे वृक्ष जड़ से उखडकर गिर पड़े । इस पर इतना कोलाहल मचा कि सारा गाँव उमड़ आया । कृष्ण लोगों को देखकर हँसने लगे । हम नहीं कह सकते कि इस घटना में कहाँ तक सत्य है । पहली बात तो कुछ असम्भव नहीं जान पड़ती, पर दूसरी बात अर्थात् एक छोटे से बच्चे के बल से दो बडे वृक्षा का जड़ से उखड़ जाना कदापि सम्भव नहीं । हॉ, यदि उन्हें बड़े वृक्ष की अपेक्षा छोटा पौधा मान लें तो झगड़ा मिट जाता है । पर ऐसा जान पड़ता है कि कृष्ण के भक्तों ने इन पौधो को अत्युक्ति से बढ़ाते-बढ़ाते बड़े वृक्ष की पदवी प्रदान कर दी है जिनके बोझ से आधा गाँव दब गया।
अवतारों की अमानुषी शक्ति के मानने वालों के लिए (चाहे वे किसी जाति के हों) इस सब कथाओं को सर्वतोभाव से सत्य मान लेने में कुछ संदेह नहीं होना चाहिए । हाँ, जो महाशय उनकी अमानुषी शक्ति को नहीं मानते, वे अपने परिणाम आप निकाल लेगे ।
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1 यह वर्णन विष्णुपुराण में नहीं है । मिस्टर पोल जिन्होने अँगरेजी में कृष्ण की जीवनी लिखी है, लिखते हैं कि अर्जुन एव मेटे से पह अम है जिसमे अंगरेजी और गला में बेचा करते है