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कृष्ण की जन्मभूमि /49

गोकुल आजकल एक बड़ा कस्बा है, जो वल्लभाचारी सम्प्रदाय की जन्मभूमि होने से इस दशा को प्राप्त हुआ है । इस सम्प्रदाय की ओट में ऐसा व्यभिचार होता है जिसे लेखनी लिखते हुए लजाती है।
(8) मथुरा से 6 मील ऊपर तीन ओर प्यारी यमुना से घिरा हुआ द्वीपाकार वृन्दावन का स्बा बसा हुआ है जहाँ कृष्ण ने बचपन के कई वर्ष व्यतीत किये । संस्कृत में वृन्दा, तुलसी के पेड़ को कहते हैं इसलिए यह अनुमान होता है कि इस बन में कभी तुलसी के पेड़ बहुत रहे होंगे जिससे इसका नाम वृन्दावन पड़ गया । अस्तु, इस नाम का चाहे कुछ और ही कारण क्यो न हो, परन्तु अब तो यह नाम ऐसा प्रसिद्ध तथा विरस्थायी हो गया कि जब तक कृष्ण का नाम जीवित रहेगा तब तक वह नाम हिन्दुओं के लिए पूजनीय बना रहेगा ।
तीन ओर यमुना की लहरें और उसके किनारे-किनारे सुन्दर तथा ऊँचे मन्दिरों की पंक्ति यह एक ऐसा दृश्य है जिसे देखकर प्रत्येक मनुष्य प्रकृति और मनुष्यकृत् शोभा के मेल से अपने चित्त को हर्षित कर सकता है । वृन्दावन में सं० 1880 में 32 घाट और लगभग 1000 मन्दिर थे । वृन्दावन वैष्णव सम्प्रदाय का मुख्य स्थान तथा राधावल्लभियों की जन्मभूमि है ।
(9) इस अध्याय को समाप्त करने के पहले कुछ और स्थानों का विवरण देना हम आवश्यक समझते हैं।
व्रजमण्डल-मथुरा का निकटस्थ प्रदेश जो 42 मील की लम्बाई तथा 30 मील की चौड़ाई मे बसा है उसे व्रजमण्डल कहते हैं । कृष्ण मत के मानने वाले इस सारे प्रान्त की यात्रा करते है । इस यात्रा को 'वनयात्रा' कहते हैं । व्रज का अर्थ पशुओं के खेड़े से है जैसे गोकुल का अर्थ गऊओं से है । यह यात्रा भाद्रपद मास में कृष्णचन्द्र के जन्मदिन के उत्सव से आरम्भ होती है । यात्रीगण मथुरा से यात्रा प्रारम्भ करते है और सारे व्रजमण्डल के मन्दिरों, वनो तथा घाटो की फेरी करते हुए गोकुल, वृंदावन इत्यादि स्थानों मे होकर फिर मथुरा में लौट आते हैं । हम स्थानान्तर में सिद्ध करेंगे कि यह वनयात्रा तथा रासलीला आदि प्राचीन काल की नहीं हैं । इन्हे पौराणिक समय के स्वार्थी पुजारियों तथा ब्राह्मणों ने अपनी जीविका के लिए रचा है ।
खेद है कि कृष्ण महाराज की जन्मभूमि में इन्हीं के नाम पर उन्हीं पर विश्वास रखने वाले ऐसा अत्याचार करें जिसे देखकर कौन-सा विचारवान् पुरुष है जिसका हृदय काँप न उठता हो या जिसके अन्तःकरण से एक बार दीर्घ निश्वास न निकलता हो । कुटिल काल ! तूने बडी अनीति मचा रखी है । और तो सब अनर्थ किया ही था, स्वतंत्रता छीनी, धन छीना, हीरे-जवाहर तक लूटे, संसार की सबसे बलवान तथा सम्पन्न जाति को भिखारी बना दिया, धार्मिक से अधर्म- युक्त किया, विद्या और विज्ञान, कला और कौशल सब कुछ ले लिया, पर हमारे पूज्य महापुरुषो के पवित्र जीवनों को तो अकलंकित छोड़ देता । हाय, तूने उनके नाम और यश को भी नष्ट कर मृतक बना छोड़ा, जिनके नाम से हमारी मृतक जाति अब तक अपने को जीवित समझती थी और जिनका श्रेष्ठ नाम लेने से हमें फिर श्रेष्ठता की आशा होती थी ।
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1 द्रव्य-महाराज लाइबल केस का विवरण
2 मिथर्क सम्प्रदाय किसमें कृष्ण की अपेन राय को अधिक महत्त्व हैल गया है