इसके पश्चात् फिर चीनी यात्री फाहियान के भ्रमणवृत्तांत में मथुरा का वर्णन आता है। फाहियान 5वीं शतब्दी के आदि में यहाँ आया। उसने अपने भ्रमणवृत्तांत में मथुरा का वर्णन किया। वह लिखता है कि उसकी राजधानी का भी यही नाम था। उसके कथनानुसार मथुरा में उस समय बौद्ध मत का विशेष प्रचार था। सब छोटे-बड़े उसी मत के अनुगामी हो रहे थें। शहर में उस समय 200 विहार (अर्थात् बौद्धो के धार्मिक मन्दिर) थे जिनमें 3 हज़ार बौद्ध भिक्षुक रहते थे और सात स्तूप (मेमोरियल मीनार) थे। फाहियान के 200 वर्ष पश्चात् एक और चीनी यात्री हुआनलिस्टांग[१] यहाँ आया। वह भी मथुरा के विषय में लिखता है कि मथुरा नगर का घेरा उस समय 4 कोस का था। यद्यपि विहारों की संख्या 200 ही थी पर उनमे रहने वाले भिक्षुकों की गिनती घटकर अब 2000 हो गई थी। इसके अतिरिक्त ब्राह्मणों ने भी 5 मन्दिर बनवा लिए थे। स्तूपों की गिनती उस समय बहुत बढ़ गई थी। हुआनलिस्टांग के समय में बौद्ध तथा पौराणिक धर्म में परस्पर विरोध फैल रहा था और वे एक-दूसरे को दबाने की चेष्टा कर रहे थे जिसका परिणाम यह हुआ कि महाराज शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट की युक्तियों से बौद्ध धर्म परास्त हुआ तथा पौराणिक मत की सारे भारतवर्ष में पुन: पताका फहराने लगी। महमूद गजनबी के आक्रमणों के समय भारत का दक्षिण प्रांत पौराणिक मत का अनुयायी हो गया था ओर मथुरा हिन्दुओं का तीर्थस्थान बन चुका था। महमूद गजनवी ने मथुरा को सन् 1017 में लूटा और मन्दिरों का विध्वंस किया। वहाँ के सबसे बड़े मन्दिर के विषय में उसने अपने नायब को पत्र में लिखा, "यदि कोई मनुष्य ऐसा मकान बनाना चाहे तो बिना एक करोड़ दीनार के नहीं बनवा सकता तथा बड़े चतुर कारीगर भी उसे 200 वर्ष से कम में नहीं तैयार कर सकते।" इतना लिखकर ये हजरत अहंकारपूर्वक लिखते हैं, "मेरे हुक्म से तमाम मन्दिरो को जलाकर जमीन में मिला दिया गया है।" 20 दिन तक शहर को लूटा गया और महमूद को तीन करोड़ का द्रव्य हाथ आया। तारीख यमीनी का लेखक लिखता है कि इस मन्दिर की प्रशंसा न लिखने से हो सकती है और न चित्र खींचने से। इस दुष्ट के आक्रमण के बाद मुसलमानों के राज्य में मथुरा नगरी फिर कभी पूरी दीप्तिमान् अवस्था को प्राप्त नहीं हुई, क्योंकि यहाँ के लोगों को सदा यही भय लगा रहा कि कहीं फिर मुसलमानों को इसे लूटने का विचार पैदा न हो जाय। पर मुसलमानों का इतिहास स्वयं इस बात की साक्षी दे रहा है कि उनके समय मे मथुरा अनेक बार धार्मिक पक्षपात का शिकार बन चुका है। 'तारीख दाऊदी' का लेखक लिखता है कि सिकंदर लोधी ने मथुरा के सब मन्दिरों को नष्ट कर दिया और मन्दिरों से सरायो और मुसलमानी पाठशालाओं का काम लिया। मूर्तियों को कसाइयों को सोंप दिया जिनसे वह मास तोला करें और मथुरा के हिन्दुओं को शिर और दाढ़ी मुँड़ाने या किसी अन्य प्रकार से पिण्ड-तर्पण कराने को भी मना कर दिया।
सिकंदर लोधी के पश्चात् जहाँगीर के समय तक मथुरा ने पुन: चैन की साँस ली, परन्तु फिर औरंगजेब का आक्रमण हुआ। सन् 1669 ई० में औरंगजेब ने मथुरा पर आक्रमण किया और केशवदेव के बड़े भारी मन्दिर को गिरवाकर ही लौटा। इसी अवसर पर मथुरा का नाम
- ↑ ह्वेनट्यांग