छान्दोग्योपनिषद् में, जो दस उपनिषदों के अन्तर्गत है और जिसे श्री स्वामी शंकराचार्य, श्री स्वामी दयानन्द और अन्य विद्वानों ने प्राचीन माना है, एक स्थान पर भिन्न-भिन्न विद्याओ का वर्णन करते हुए इस प्रकार का लेख है--
स होवाच। ऋग्वेदं भगवोऽध्येमि यजुर्वेदं
सामवेदमाथर्वणचतुर्थमितिहासपुराणं पञ्चमम्।[१]
(1) अर्थात् हे भगवन् ! मैं ऋग्, यजुः, साम और अथर्व को जानता हूँ और इसके अतिरिक्त इतिहास और पुराण से भी भिज्ञ हूँ।
(2) एक स्थान पर शतपथ ब्राह्मण (14-6-10-6) में कहा गया है-
ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणं विद्या उपनिषदः श्लोका सूत्राण्यनुव्याख्यानानि व्याख्यातानि॥
अर्थ-ऋग, यजुः, साम अथर्ववेद, इतिहास-पुराण, उपनिषद्, सूत्र, श्लोक और उनके व्याख्यान आदि।
(3) तैत्तिरीय आरण्यक में दूसरे आरण्यक के नवें श्लोक में लिखा है--
ब्राह्मणानीतिहासान् पुराणानि कल्पान् गाथा नारांशसीः।
अर्थात्--वेद, इतिहास, पुराण, गाथा आदि।
(4) इसी प्रकार मनुस्मृति में तीसरे अध्याय के 232वें श्लोक[२] में भी आख्यान, इतिहास और पुराण शब्द कई स्थान पर आये है। रामायण, महाभारत और पुराणों के पढ़ने से विदित होता है कि पुराकाल में इतिहासवेत्ताओं और इतिहासलेखकों के अतिरिक्त एक ऐसी मंडली होती थी जिनका कर्तव्य यही होता था कि वे राजदरबार में प्राचीन घटनाओ और राजा-महाराजाओ तथा वीर योद्धागणों के चरित्र सुनाया करें। महाभारत में स्थान-स्थान पर आया है कि सूत महाराज ने अमुक अमुक वृत्तान्त वर्णन किया।
(5) संस्कृत का प्रसिद्ध कोशप्रणेता अमरसिंह पुराण शब्द की व्याख्या करता हुआ कहता है कि पुराण के पाँच लक्षण हैं। यो कहिये कि पुराणों में पाँच प्रकार के विषय होते हैं।
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितञ्चैव पुराणं पञ्चलक्षणम्॥
अर्थात्-सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन, सृष्टि-विशेष का वृत्तान्त, प्रसिद्ध घरानों का इतिहास भिन्न-भिन्न समय का वर्णन और महापुरुषों के जीवनचरित।
(6) विष्णुपुराण के तीसरे खण्ड के 6ठे अध्याय के 16वें श्लोक में इतिहास को चार भाग