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महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग / 135
 

और तप करने लगे। जब दारुक ने अर्जुन के समीप जाकर उससे सब समाचार कहे तो अर्जुन तुरन्त द्वारिका चले आये और कृष्ण के परपोते वज्रनाभ को यादव स्त्रियों सहित हस्तिनापुर लिवा ले गये। उसने कृष्ण के अधीन राज्य भी वज्रनाभ के नाम कर दिया।

श्रीकृष्ण की मृत्यु के विषय में किंवदन्ती है कि वे जब योग समाधि में बैठे थे तो एक शिकारी का तीर इनके पैर में आ लगा। जब शिकारी पास आया तो उसे मालूम हुआ कि उसने भूल से एक मनुष्य को अपने तीर से घायल कर दिया है। इस भूल पर वह बहुत पश्चात्ताप करने लगा, परन्तु कृष्ण महाराज ने उसको धैर्य दिया। यहाँ तक तो एक प्रकार से यह संभव घटना का वर्णन है, परन्तु आगे इसी कथा का अंत इस प्रकार होता है कि उस शिकारी बधिक के देखते-देखते कृष्ण महाराज[१] आकाश में चले गये जहाँ सब देवताओं ने मिलकर इनका भक्तिपूर्वक स्वागत किया और इनके आगमन से प्रसन्न होकर बड़ा आमोद-प्रमोद मनाया।

 

  1. ईसा मसीह के विषय में भी ऐसी ही दन्तकथा प्रसिद्ध है कि वह अपनी मौत से तीसरे दिन जिन्दा होकर फिर आसमान पर चढ़ गए। यदि बुद्धिमान् ईसाई ईसा मसीह के विषय की उक्त घटना पर विश्वास कर सकते हैं तो उन्हें इस पौराणिक वर्णन की घटना पर विश्वास करने में क्यों संदेह होता है?