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भविष्यत्कथावर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६. (१६७५) शरीर भी आरोग्य होवे, अरु ब्रह्मांड खपरको भी लंचि जावौं, अरु जहाँ मेरी इच्छा होवे, तहां चंला जाऊँ, मुझको रोकै कोई कहूं नहीं, जब संसारका अंत देखौंगा, तब आत्माको प्राप्त होऊँगा ॥ है देव ! एता वर देहु, जो मेरा मनोरथ पूर्ण होवै, अपर कछु नहीं कहना ॥ हे वधिक ! जब इसप्रकार तू वर माँगैगा, तव ब्रह्माजी कदैगा, कि ऐसेही होवै, तव तेरा तप करिकै दुर्वल हुआ शरीर बहुरि चंद्रमा अरु सूर्यकी नाई प्रकाशवाच होवैगा, अरु घड़ीचड़ीविषे योजनपर्यंत बढता जावैगा, जैसे गरुडका तीक्ष्ण वेगकार चलना है, वैसे तेरा शरीर वेगकरि बढ़ता जावैगा, जैसे प्रातःकालका सूर्य उदय होता है, अरु प्रकाश बढ़ता जाता है, तैसे तेरा शरीर बढ़ती जावैगा, अरु चंद्रमा सूर्य अग्निकी नई प्रकाशवान् होवैगा, ब्रह्माजी वर देकर अंतर्धान हो जावैगा, अपनी ब्रह्मपुरीविषे जाय प्राप्त होवैगा, अरु तेरा शरीर प्रलयकालके समुद्रकी नई वढ़ता जावैगा, अरु जैसे वायुकरि सूखे तृण उडते हैं, तैसे तुझको ब्रह्मांड उड़ते भासँगे, तव तेरा शरीर बढ़ता ब्रह्मांड खपरको भी लंचि जावैगा, तिसके पूरे आकाश भासैगा, वहरि ब्रह्मांड भासैगा, आगे वहुरि ब्रह्मांड, इसी प्रकार तू कई ब्रह्मांड लंघता जावैगा, परंतु तुझको खेद कछु न होवैगा,महाआकाशको भी तू आच्छादित कर लेंवैगा, जहां किसी तत्त्वका आवरण आवैगा, तिसको तू वरप्राप्त देहकर सूक्ष्मता करिके लंचता जावैगा ॥ हे वधिक ! इसी प्रकार कई सृष्टिं लंघि जावैगा, कैसी सृष्टि हैं, जो इंद्रजालवत हैं, जो दीर्घदर्शी हैं, सो इनको असत् जानते हैं, अरु जो प्राकृत जन हैं। तिनको जगत् सत् भासता है, अरु ज्ञानवान्को मिथ्या भासता है; तिस मिथ्या जगत्को तू लंचता जावैगा, तहाँ जाय स्थित होवैगा, जहां अनंत सृष्टि फुरती भासँगी, जैसे समुद्रविषे अनेक तरंग उठते हैं, तैसे तुमको सृष्टि फुरती भासैगी, परंतु जिसविषे सृष्टि फुरती है, तिस अधिष्ठानका तुझको ज्ञान न होवैगा, तहां तु देखेगा कि, मैं वडा उत्कृष्ट हुआ हौं, अरु ऐसा अभिमान तुझको उदय होवैगा, तब तपको फल वैराग्य भी आनि उदय होवैगा, अरु साथही यह संस्कार तेरे हृदयविषे आनि कुरैगा, तिसकर शरीरको तू निरादर करैगा, अरु कगा, हा