पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७२१

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योगवासिष्ठं । अरु ज्ञानवान्को परब्रह्म सूक्ष्म ज्योंका त्यों भासता है, जगतुको असत् जानता है, जैसे आकाशविषे अनहोती नीलता भासती है, . तैसे आत्माविषे अनहोता जगत् भासता है; जैसे नेत्र दूषणकार आकाशविषे तरुवरे भासते हैं, तैसे अज्ञानकारि आत्माविषे जगत् भासता है, सो केवल आभासमात्र है, हे रामजी ! जगत् उपजा भी दृष्ट आता है, अरु नष्ट होता भी दृष्ट आता है, परंतु बना कछु नहीं, जैसे संकल्पका रचा फुरणा अपने मनविषे भासता है तैसे यह जगत् मनविषे फुरता है, यह संपूर्ण भूगोल संकल्पविपे स्थित है, जैसे बालक संकल्पकारकै पत्थरका वटा रच तैसे भूगोल यह ब्रह्मांड सौ कोटि योजनपर्यंत है, तिसका एक भाग अधको गया है, एक ऊर्ध्वको गया है, तिसविषे चेतनरूपी बालकने यह भूगोल रचा है, सो संकल्पके आश्रय खडा है, जैसे आदिनीति हुई है, तैसे भासता है, इस पृथ्वीके उत्तर दिशाविषे सुमेरु पर्वत है, अरु पश्चिम दिशाक ओर लोकालोक पर्वत है, अरु ऊपर तारा नक्षत्रचक्र फिरता है, लोकालोकके जिस औरते आता है, तिस और प्रकाश होता है, अरु भूगोल ऐसे हैं, जैसे गेंद होता है, तिसके एक ओर पाताल है, अरु एक ओरते स्वर्ग है, एक ओर मध्यमंडल है, अरु आकाश सर्व ओर है, पातालवासी जानते हैं, हम ऊध्र्व हैं, आकाशवासी जानते हैं, कि हम ऊर्ध्व हैं, मध्यमवासी जानते हैं कि हम ऊध्र्व हैं, इस प्रकार भूगोल है, तिसके परे एक खात है, शून्य जैसा महातमरूप, जहां न पृथ्वी है, न कोऊ पहाड है, न स्थावर है, न जंगम है, न कछु उपजा है, कबी महात्मा जैसा है, अरु तिसके परे स्वर्णकी कंथ है, दश सहस्र योजन तिसका विस्तार है, तिसके परे दशगुण जल है, पृथ्वीके चौफेर वेष्टन है, तिसते परे दशगुण अग्नि है, तिसते परे दशगुण वायु है, तिसते परे साकाश है, तिसते परे ब्रह्माकाशं महाकाश है, तिसविषे अनंत ब्रह्मांड स्थित है, सो क्या हैं, अरु कैसे स्थित हैं, तत्त्व हैं, जैसे कपूरके आश्रय तृण ठहरते हैं, तैसे पृथ्वी भागके आश्रय तत्त्व हैं, वस्तुते क्या है शुद्ध चेतन ब्रह्मका चमत्कार है, सो ब्रह्म आकाशवत् निर्मल है, तिसविषे