पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६६९

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( ३५५०) योगवासिष्ठ । पडता है, सो अकारणरूप है, तैसे यह जगतु अकारणरूप है, अज्ञानीको तिसविषे सत्यता है, प्रमाददोषकारकैज्ञानीको द्वैत नहीं भासता, अज्ञानीको द्वैत भासता है । हे रामजी! हमको तौ सदा चिदाकाशही भासता है, हम जागे हुए हैं, ताते द्वैत कछु नहीं भासता, जैसे सूर्यको अंधकार नहीं भासता, तैसे हमको द्वैत नहीं भासता, जो ज्ञानी है, तिसको ब्रह्मते इतर कछु नहीं भासता, सर्व ब्रह्मही भासता है ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निवणिप्रकरणे परमार्थरूपवर्णन नाम द्विशताधिकनवमः सर्गः ॥२०९॥ शताधिकदशमः सर्गः २१०, - - - नास्तिकवादुनिराकरणम् ।। श्रीराम उवाच ॥ हे भगवन् ! जो कछु तुमने कहा है, सो मैं जानता भया हौं, परंतु नास्तिकवादीका कल्याण भी किसीप्रकार होता है, जो नास्तिकवादी कहते हैं, कि जबलग जीव है, तबलग सुखी जीवे,जब मेर जावैगा तब भस्मीभूत होवैगा,नकहूँ आना है, न कहूँ जाना है, तिनका कल्याण किस प्रकार होवैगा। वसिष्ठ उवाच॥ हे रामजी ! आत्मसत्ता आकाशकी नाई अखंडित सर्वत्र पूर्ण है,जबलग तिसका भान नहीं होता, तबलग मनकी तप्तता नष्ट नहीं होती, जब आत्मसत्ताका भान होता है, तब शांति प्राप्त होती है, आपको अमर जानता है, अरु जिस पुरुषने अखंड निश्चयको अंगीकार किया है, तिसको दुःख स्पर्श नहीं करता,वह ब्रह्मदर्शी होता है, अरु जिसको ब्रह्मसत्ताका निश्चय नहीं भया तिसके मनको ताप नहीं छोडते, स्वरूपके प्रमाकार आपको मरता जानता हैं, अरु महाप्रलयरूप आत्माविषे सर्व शब्दको अभावहै,जैसे महाप्रलयविषे सर्व शब्दका अभाव होता है, तैसे आत्माविषे सर्व शब्दका अभाव हैं, जिसको आत्माविषे निश्चय हुआ हैं, तिसको सर्व शब्दका अभाव हो। जाता है, सो महा ज्ञानवान् है, उसको आत्मसत्ताही भासती है, जो । वास्तव है, तिसको हमारा उपदेश नहीं, वह ज्ञानी है। हे रामजीआत्म