पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६४३

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(१५२४) योगवासिष्ठ । अपानके क्षोभकारकै दुःख होता है सो मैंही साकार निराकाररूप हौं, रक्त पीत श्यामरंग पदार्थ सब मैंही हौं, पंचभूत चिद्गुणते फुरे हैं, सो उसीका रूप हैं, जैसे स्वप्नकी सृष्टि सब अपनाही रूप होती है, इतर कछु नहीं, हाड़ माँस पृथ्वीकारे भूतविर्षे स्थित भया हौं, वायुरूप प्राण होकार स्थित भया हौं, अग्निरूप क्षुधा होकार स्थित भया हौं, आकाशरूप अवकाश होकार स्थित भया हौं, इसप्रकार मैं सर्वविषे स्थित भया हौं, सो मैं भी चेतन वपु हौं, वह तत्त्व भी चेतनवपु हैं, जैसे स्वप्नविषे जगत् आकाशरूप है, तैसे वह भी आकाशरूप हैं ॥ हे रामजी ! सर्वका सर्वकाल सर्वप्रकार सर्वात्मा स्थित है, दूसरा कछु नहीं, आत्मसत्ता सदा अपने आपविष स्थित है, इसते इतर जानना भ्रांतिमात्र है. यह दृष्टि ज्ञानवान्की है, जो असम्यकूद हैं, तिनको भिन्न भिन्न पदार्थ भासते हैं, इसप्रकार मैं संपूर्ण जगत् अपनेविषेही देखत भया । हे रामजी ! मैं कौन हौं, मैं जो ब्रह्मरूप था, तिसविषे जगत् उत्पन्न होते दृष्ट आये, अरु जो मैं ब्रह्मते इतर कहौं, एक तृण न उत्पन्न होवै, मैं जो ब्रह्मरूप था, तिसते सृष्टि उत्पन्न होती हैं । हे रामजी ! जब मैं बोधदृष्टिकरि देखा । तब आत्माते इतर कछु न देखा, जब अंतवाहकदृष्टिकर देखौं, तब मेरे ताई स्पंदकारकै अणु अणुविषे सृष्टि भासती हैं, जैसे जहाँ चंदनका अणु होता है, तहाँ सुगंधि होती है, तैसे जहाँ जहाँ तत्त्वके अणु हैं, तहां तहां सृष्टि है । हे. रामजी । एक अणुविषे अनंत सृष्टि मुझको भासे हैं, जैसे एक पुरुष शयन करता है, अरु तिसको स्वप्नविषे सृष्टि भासती है, बार स्वमते स्वप्नांतरकी सृष्टिको देखता है, तो एकही जीवविषे बहुत क्यों भासै, तैसे अणुविषे अनेक सृष्टि हैं । हे रामजी ! जो सृष्टि है सो आभासरूप है, अरु आभास अधिष्ठानके आश्रय होता है, सो सबका अधिछान ब्रह्मसत्ता है, देश कालके परिच्छेदते रहित है, अरु अखंड अद्वैतसत्ता है, इसीते कहा, जो अणुअणुविषे सृष्टिहै, काहेते कि, कोङ अणु भिन्न वस्तु नहीं, ब्रह्मसत्ताहीहै, जो सर्वं ब्रह्म है, तौ सृष्टि भी ब्रह्मरूप हैं, ताते सर्व ब्रह्मही जान, ब्रह्म अरु जगतुविषे भेद कछु नहीं, जैसे वायु अरु स्पदृविषे भेद नहीं, तैसे ब्रह्म अरु जगविषे भेद नहीं ॥ इति श्रीयोगवा० निर्वाणब्रह्मजगदेकताप्रतिपादनं नाम द्विशताधिकतृतीयः सर्गः॥२०३॥ जो में ब्रह्मतेजी ब्रह्मरूप था, सनविषेही देखतभिन्न पदार्थ भास