पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६१४

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जगन्मिथ्यात्वप्रतिपादनवणन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६. (१४९५) शरूप था, अरु जो कछु करता भया सो सुन् ॥ हे रामजी ! ऐसा जो रुद्र था, मानो आकाशको पंख लगे हैं, सोई उड़ा है, तिसने नेत्र प्राणोंको खेंच लिये तब सर्व जल-सुखविषे प्रवेश करने लगे, जैसे नदी समुद्रविषे प्रवेश करती हैं, तैसे सब जल रुद्रविषे लीन भए,जैसे वडवाग्नि समुद्रको पान कार लेतीहै,तैसे रुद्रले एक मुहूंतेविषे सबजलको पान कर लिया, कहूँ जलका अंश भी दृष्ट न आवै, जैसे अंधकारको सूर्य लीन कर लेता है, तैसे पान कर लिया, जैसे अज्ञानीका अज्ञान संतके संगकार नष्ट हो जाता है, जैसे जलको पान कर लिया, केवल शुद्ध आकाश हो गया, न कहूँ पृथ्वी दृष्ट आवै, न अग्नि न वायु न कोऊ तत्त्व कहूँ दृष्ट आवै, एक आकाशही दृष्ट आवै, जैसे उज्वल मोती होता है, तैसे उज्जवल आकाश दृष्ट आवै, अपर चारों तत्त्व कहूँ न भासें, एक अधोभाग दृष्ट आवै, मध्य भाग आकाश सो रुद्रही दृष्ट आवै, अरु एक ऊर्ध्व भाग हष्ट आवै, चौथा चिदाकाश दृष्टं आवै, जो सर्वात्मा हैं, अपर कछु दृष्ट न आवै । हे रामजी ! रुद्र भी आकाशरूप था, आकार कोऊ न था, भ्रांतिकारकै आकार भासता था जैसे भ्रमकारकै आकाशविषे नीलता तरुवरे भासतेहैं, जैसे स्वप्नविर्षे भ्रमक रिके आकार भासते हैं, तैसे रुद्रका आकार दृष्ट आया, केवल आत्मा आकाशते इतर कछु न था, जैसे चिदाकाशविषे भ्रताकाश भ्रमकरिकै भासता है, तैसे रुद्रुका शरीर भासा, वह रुद्र सर्वात्मा था, अरु आकाश होकार भासा सोकिंचन था। हे रामजी!आकाशविषे रुद्ध निराधार भासा , था, जैसे मेघ निराधार होते हैं, तैसे निराधार दृष्ट आया था ॥ श्रीराम उवाच ।। हे भगवन् ! इस ब्रह्मांडके ऊपर क्याहै, बहुरि तिसके ऊपरक्या है सो कहौ ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! यह जो ब्रह्मांडका आकाश है, तिसपर दशगुणा जल अवशेष है, जलके ऊपर दशगुणा अग्नि है, तिसके ऊपर दशगुणा वायु है, तिसके ऊपर दशगुणा आकाश है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! यह तत्त्व जो तुमने वर्णन किये सो किसके ऊपर १ ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! यह तत्त्व पृथ्वीके ऊपर स्थित हैं, जैसे माताकी गोदविषे बालकआनि स्थित होता है, जैसे तत्त्व पृथ्वीके ऊपर