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योगवासिष्ठ।

देखे हैं, ऐसा योगीश्वर मुझको मधुर अरु उचित आगम वाणी कहत भया भुशुण्ड उवाच॥ हे मुनीश्वर! इस जगत‍्विषे जो बडा है, सो सदाशिव सबका नायक देवताओंविषे देवताओंका देव है, अरु अर्धांगी भगवती गौरीको शरीरविषेधारीहै, महासुंदरमूर्ति त्रिनेत्र है, अरु बडी जाहै. अरु मस्तकपर चंद्रमाहै अमृत जिसते स्रवताहै. अरु गंगा जिसकी जटाके चारों ओर चलती है, जैसे फूलमाला कंठविषे होतीहै, तैसे चलतीहै, अरु नीलकंठ है, कालकूट विषके पानकरि वह विभूषण हो गयाहै, अरु कंठविषे रुंडकी माला है, अरु सर्व ओरते भस्म लगी हुईहै, अरु दिशा जिसके वस्त्र हैं, अरु स्मशानविषे जिसका गृह है, अरु महाशातरूप विचरताहै, अरु साथ जो सेना है, तिसके महाभयानक आकार हैं, किसीके तौ रुद्रकी नाईं तीन नेत्र हैं, अरु किसीका तोतेकी नाईं मुख है, किसीका ऊंटका मुख है, किसीका गर्दभका भुख है, किसीका बैलका मुख है, भूत विचरनेहारे हैं, कई जीवके अंतर प्रवेशकरिजानेहारे हैं, रक्तमांसका भोजन करनेवाले जिसके साथ फिरते हैं, कई पहाड़विषे रहते हैं, कई वनविषे, कई कंदराविषे, स्मशानविषे, इत्यादिकस्थानविषे उनका निवास होता है, अरु साथ देवियां भी ऐसी हैं, जिनकी महाभयानक चेष्टा आचार है, तिन देवियोंविषे जो मुख्य देवियां हैं, तिनका जिस जिस दिशाविषे निवासहै, सो सुनो, जया अरु विजया अरुजित अरु अपराजित वामदिशाकी ओर तुंबर रुद्रके आश्रित हैं, सिद्ध अरु सुखका अरु रक्तका अरु उतला भैरव रुद्रके आश्रित हैं, सो सर्व देवियोंके मध्य यह अष्ट नायका, और शत सहस्त्र देवियां हैं, रुद्राणी, वैष्णवी, अरु ब्रह्माणी, वाराही, वायवी अरु कौमारी, वासवी अरु सौरी, इत्यादिक शतसहस्त्र देवियां हैं, इनकेसाथ मिलीहुई, आकाशविषे उत्तम देव, किन्नर, गंधर्व, पुरुषासुर संभवतीहैं, तिनमेंसे मिलीहुई भूचर पृथ्वीविषे कोट है, नानाप्रकार रूप नाम धारणेहारी हो पृथ्वीविषे जीवका भोजन करती हैं, किसीके वाहन ऊंट हैं, किसीके गर्दभ हैं, किसीके काक, किसीके वानर हैं, किसीके वाहन तोते इत्यादिक वाहन तिनके तीनों जगविषे रहते हैं, तिन देवियोंविषे कई पशुधर्मिणीहैं, जो क्षुद्रधमविषे