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सुमेरुशिखरलीलावर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

अरु ब्रह्मके नाभिकमलते जिसकी उत्पत्ति है अरु पितामह नामकरि कहाता है, तिसका मानसी पुत्र श्रेष्ठ आचार है॥ जिसका ऐसा जो मैं वसिष्ठ हौं, अरु नक्षत्र ताराचक्रविषे मेरा निवास है, युग युग प्रति मैं तहां रहता हौं, सो मैं जब नक्षत्रचक्रते उठा, तब इन्द्रकी समाविषे आया, तहां ऋषीश्वर मुनीश्वर बैठे थे, जब नारद आदिकविषे चिरंजीवीका कथाप्रसंग चला तब तहां शातातप नाम एक ऋषीश्वर था, सो कैसा था? मन जो मान करनेके योग्य बुद्धिमान् था, सो कहत भया, कि हे साधो! सबविषे चिरंजीवी है सो एक है, सुमेरु पर्वतकी जो कंदरा है, तिसकी कोण पद्मराग नानी जो कंदरा है, तिसके शिखरपर एक कल्पवृक्ष है,सो महासुन्दर अपनी शोभाकरि पूर्ण है, तिस वृक्षके दक्षिण दिशा टास है तहाँ पक्षी रहते हैं, तिन पक्षीविषे महा श्रीमान एक कौवा रहता है, भुशुण्ड तिसका नाम है, सो कैसा है, वीतराग अरु बुद्धिमान वह वहां रहताहै, उसका आलय कल्पवृक्षके टास ऊपर बना हुआ है, जैसे ब्रह्मा नाभिकमलविषे रहता है, तैसे वह आलयविषे रहता है जैसे ऐसा वह जिया है, तैसे न कोऊ जियाहै, न जीवैगा, उसकी बड़ी आयुर्बल है, अरु श्रीमान् महाबुद्धिमान विश्रांतिमान शांतरूप अरु कालका वेत्ता वह है॥ हे साधो! बहुत जीना भी तिसका सफल है, अरु पुण्यवान् भी वही है, जिसको आत्मपदविषे विश्रांति भई है, अरु संसारकी आस्था जाती रही है, ऐसा जो पुरुष है सो वह है, ऐसे गुणकरि संपन्न तिसका नाम काकभुशुण्ड है, इसप्रकार जब उस देवताके देवने संपूर्ण समाविषे कहा तब ऋषीश्वरने दूसरी बार पूछा, कि उसका वृत्तांत बहुरि कहौ, तब उसने बहुरि वर्णन किया, तिस कालमैं सब आश्चर्यको प्राप्त हुए, जब ऐसे कथा वार्ता हो चुकी, तब सबही सभा उठि खडी हुई अपने अपने आश्रमको गये अरु मैं आश्चर्यवान हुआ, कि ऐसे पक्षीको किसप्रकार देखिये, ऐसे विचार करिकै मैं सुमेरु पर्वतकी कंदराके सन्मुख हुआ अरु चला, तब एक क्षणविषे जाय प्राप्त भया, क्या देखा कि महाप्रकाशरूप कंदराका शिखर है, रत्नमणिकरि पूर्ण है, अरु गेरूकी नाईं रंग है, जैसे अमिकी ज्वाला होती है, तैसे प्रकाशरूप है, मानो प्रलयकालमें