पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/४०८

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अहंकारनाशविचारवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१२८९) हे रामजी ! जबलगअज्ञान है,तबलग इच्छा नाश नहींहोती,अरुकर्मभी। नाश नहीं होते, नाश दोनोंका भेद नहीं होता, परंतु भेद अज्ञानीको भासता है, जो इच्छा है, यहकर्म, अरु ज्ञानवान्को सर्व ब्रह्मही भासता है ताते सुखीरहता है, अरुअज्ञानीको कर्मविषे कर्म भासताहै, ताते बंधमान होता है, अरु इसीका नामत्यागहै, जो कर्मते कर्मबुद्धिजावें, अरु इसका नाम त्याग नहीं जो क्रियाका त्याग करना है ॥ ॥ हे रामजी ! बडी उपाधि अहंकार है, जिसका अहंकार नष्ट हुआ है, उसने वह पुरुष कर्म करता है, तो भी कबहूँ कछु नहीं किया, अरु जो अहंकार सहित है, वह पुरुष जो तूष्णीं हो बैठा है, तौ भी सब कर्म करता है, इस अहंके त्यागका नाम सर्वत्याग है, अपर क्रियाके त्यागका नाम सर्वत्याग नहीं, पुरुषप्रयत्न यही हैं, जोसर्व कमका बीजअहंकारकात्यागना अरु परम शांतिको प्राप्त होना ॥ इति श्रीयोगवासिष्टे निर्वाणप्रकरणे कर्मबीजदाहोपदेशो नाम शताधिकैकोनत्रिंशत्तमः सर्गः ॥ १२९ ॥ शताधिकत्रिंशत्तमः सर्गः १३०. अहंकारनाशविचारवर्णनम् । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! इस संवेदनका होनाही अनर्थ है, जो आपको कछु जानता हैं, जब यह निवृत्त होवै, तवहीं इसको आनंद ॥ हे रामजी ! ज्ञानीकी चेष्टा अहंकारते रहित स्वाभाविक होतीहै,जैसेअर्धनिद्रित पुरुष होता है, जैसे ज्ञानी अपने स्वरूपविषे घूर्म है, जैसे हस्ती मकार उन्मत्त होता है, तैसे ज्ञानवान् स्वयंब्रह्म लक्ष्मीकार घूर्म है, अरु ज्ञान ऐसा व्यसन हैं, जैसा कामीको काम व्यसन होता है, तैसे यह सुखरूपी स्त्रीको पायकर बूर्म रहता है, काहेते जो निरहंकार हैं, सर्व दुःखका बीज अहंकार. जब अहंकार नष्ट हुआ, तब आनंद भया । हे रामजी ! संसाररूपी विषकी वल्ली है, तिसका बीज अहंकार है, जब अहंकार अभाव होवै, तब संसारका अभाव होता है ॥