पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३८७

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( १२६८) योगवासिष्ठ । आत्मा है, ऐसी भावना करहु, तब सिद्धही आत्मा भोसैगा, अरु जिनको संसारका निश्चय हुआ है, तिनको संसार है । हे रामजी ! जो पुरुष धर्मात्मा है, तिसको उसी वासनाके अनुसार भासता है, सो धर्मात्मा भी दो प्रकारके हैं, एक सकामी, एक निष्कामी, जो धर्म करते हैं, अरु पापरूपी कामनासहित हैं, तौ स्वर्गभोग भोगिकरि बरि गिरते हैं, अरु जो निष्काम हैं, ईश्वरार्पण कर्म करते हैं, तिनका अंतःकरण शुद्ध होता हैं, बहुरि ज्ञानकी प्राप्ति होती है, यह भी संसारविषे मर्यादा है, जैसा किसीको निश्चय होता है, तैसाही संसारको देखता है, पिंडकरिकै भी शरीर होता है, काहेते जो यह भी आदि नेतिविषे निश्चय हुआ है, सो जैसे आदि नेतिविषे निश्चय हुआ है, तैसे होता है, जो पवन है, सो पवनही है, जो अग्नि है, सो अग्निही है, इसीप्रकार कल्पपर्यंत जैसे मनोराज्य हुआ है, तैसेही स्थित है. जैसे जल नीचेहीको जाता है, ऊँचे नहीं जाता, तैसे जो आदि किंचनविषे निश्चय हुआ है, कल्पपर्यंत सोई हैं । हे रामजी ! जगत् व्यवहारविषे तौ ऐसे है; अरु परमार्थते दूसरा कछु हुआ नहीं, इस जीवने आकाशविषे मिथ्या देह रची है, परमार्थते केवल निराकार अद्वैत आत्मा है, शरीर इसकेसाथ है नहीं, ताते जगद कैसे होवै ॥ इति श्रीयोवासिष्टेनिर्वाणप्रकरणे पिंडनिर्णयवर्णनं नाम शताधिकविंशतितमः सर्गः ॥ १२० ॥ शताधिकैकविंशतितमः सर्गः १२१. ती बृहस्पतिवलिसवावर्णनम् ।। वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! तेरे प्रश्नऊपर बृहस्पति अरु बलिराजाका एक इतिहास है, सो श्रवण कर। जब दूसरे परार्धके छः कल्प व्यतीत हुए थे, तिस दिनके युगविषे राजा बलि होत भया, सो कैसा ‘था पराक्रमी मूर्ति था, तिस राजा बलिने संपूर्ण दैत्यों अरु राक्षसोंको जीतिकार अपने वश किया, अपनी आज्ञा तिनपर चलाई, अरु राजा हुआ, अरु ईको भी जीतिकार अपने वश किया, पूर्ण ऐश्वर्य तिसका