पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३४८

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अविद्यानाशरूपवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६ (१२२९) यह विश्व जो तुम ब्रह्मरूप कही, मेघविषे बिजलीकी नई क्षणमें उपजती हैं, क्षणविषे लीन होती है, सो मेघविषे बिजली दृष्ट आती है, जहाँ मेघ होता है, तहां बिजली भी होती हैं ताते मेघते बिजली उत्पन्न भई तिसका कारण मेघ है, हे मुनीश्वर! इस चित्तस्पंद कलाके कारणकी उत्पत्ति ब्रह्मते कैसे हुई हैं, सो कृपा कारकै मुझको समुझाय कहौ, ब्रह्महीं इसका कारण हुआ ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! यह जो वितंडक होकार तर्क करता है सो कछु नहीं, इस नाशबुद्धिको त्याग, यह तौ बालक भी जानते हैं, जो बिजली क्षणभंगुररूप है, सत्य कछु नहीं, अपर तेरा क्या प्रयोजन है, सो कडु, यह तर्क कारण कार्यरूपका कैसा करता है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! यह स्पैकला सत्य है कि असत्य है, इसका कारण कौन है, जिसकारि यह ऊरती है ॥ वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी ! सर्व प्रकारकी सर्वात्माही स्थित है, अपर चित्त अरु चित्तस्पंद यह भेदकल्पना वास्तव कछु नहीं, ब्रह्मही अपने स्वरूपविष आप स्थित है, अफ्र जो कछु उसते इतर भासता है, सो भ्रमकरि भासता है, जैसे भ्रमद्दष्टिकार आकाशविषे मोती भासते हैं, जैसे नेत्र -सुदिकार खुलते हैं, तब तरुवरे आकार भासते हैं, तैसे यह जगत् भ्रमकारकै भासता हैं । हे रामजी ! हम इस संसारसमुद्रके पारको प्राप्त हुए हैं, हमते आदि लेकर जो ज्ञानवान् हैं, सो तिनके यथार्थ वचन सुनिकरि हृदयविषे धारै तौ शीत्रही आत्मपदकी प्राप्ति होवै, अरु जो मूर्खता कारकै मेरे वचनोंको न धारैगा कि, यह क्या कहते हैं, तब तेरा दुःख नष्ट न होवैगा, वृक्ष तृण वल्ली आदिक योनिको पावैगा ॥ हे रामजी । आकाश अरु काल आदिक पदार्थ हैं, सो सब कुलनाकार सिद्ध हुए हैं, आत्माविषे को नहीं ॥ हे रामजी ! वायुते रहित जो समुद्रुका चमत्कार है, तिस चमत्कारका कारण कौन है, अरु दीपकका जो प्रकाश है, अरु अग्निविषे उष्णता हैं, तिस प्रकाश अरु उष्णताका कारण कौन है, अरु वायु जो निस्पंद है, जब वही स्पंद हुई, स्पंदका कारण कौन है, जैसे इनका कारण कोऊ नहीं, जो वायुका रूप स्पंद निस्पंद है, अरु अग्निका रूप उष्णता है, अरु दीपकका रूप प्रकाश है।