पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३०१

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( १३८२) योगवासिष्ठ । रहित है, सो पुरुष महाकर्ता है; अरु जिस पुरुषने सुखदुःखका त्याग किया है, जो सुखदुःखकी भावना नहीं फुरती, यही त्याग है, जो अपर कछु नहीं फुरता है, ऐसा पुरुष महाकर्ता है ।। हे भुंगी। जो पुरुष प्राप्त हुई वस्तुको रागद्वेषते रहित होकर भोगता है, सो महाभोक्ता है, अरु जो बडा कष्ट आय प्राप्त होवै, तिसविषे दोष नहीं रहता, अरु बडे सुखकी प्राप्तिविषे हर्षवान नहीं होता, सो पुरुष महाभोक्ता है, अरु जो बड़े राज्यके सुख भोगनेविषे आपको सुखी नहीं मानता, राज्यके अभाव - होने अरु भिक्षा माँगनेविषे आपको दुखी नहीं मानता, सदा स्वरूपविषे स्थित हैं, सो महाभोक्ता है, अरु जो मान अहंकार अरु चिंतनाते रहित है, केवल समताविषे स्थित है, सो महाभोक्ता है, अरु जो कोऊ कछु देवै, तो आपको लेनेवाला नहीं मानता, अरु शुभक्रियाविषे भोक्ताहुआ आपको कर्तृत्व भोकृत्व नहीं मानता सो पुरुष महाभोक्ता है, अरु जो मीठा खाटा तीक्ष्ण सलोना कटु यह रस प्राप्त होते हैं, तिनके भोगनेविषे समचित्त रहता हैं, अरु सम जानता है सौ महाभोक्ता हैं, जो रसवान् पदार्थ प्राप्त हुएते हर्षवान् नहीं होता, अरु विरसके प्राप्त हुएते दोषवान् नहीं होता, ज्योंकी त्यों रहता है, जैसा आय प्राप्त होवे, भलाबुरा,तिसको दुःखते रहित होकार भोगता है,ऐसा पुरुष है सो महाभोक्ता है, अरु जेती कछु क्रिया हैं, शुभ अशुभ भाव अभाव तिसके सुखदुःखते चलायमान नहीं होता, सो पुरुष महाभोक्ता है, अरु जिसको मृत्युका भय नहीं अरु जीनेकी आस्था नहीं, उद्युअस्तविषे समानहै सो महाभोक्ताहै, बडे सुखप्राप्तिविष हर्षवान नहीं होता अरु दुःखकी प्राप्तिविषे शोकवान नहीं होता, ज्योंका त्यों रहता है,सो महाभोक्ता है, जो कछु अनिच्छित आय प्राप्त होवै, तिसको कर्ता हुआ अहंकारते रहित है, सो पुरुष महाभोक्ताहै, जो पुरुष शत्रु मित्र सुहृद्विवर्षे समबुद्धि रहता है, विषमताको कदाचित नहीं प्राप्त होता सो पुरुषमहाभोक्ता हैं, जेता कछु शुभ अशुभ दुःख सुख आय प्राप्त होवे, तिसको धारि लेता है, कदाचित् विषमताको नहीं प्राप्त होता जैसे समुद्रविषे नदियां आय प्राप्त होती हैं, तिनको धारिकार सम रहता है, तैसे