पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२९८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

परमार्थयोगोपदेशवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. ११७९ चिन्मात्र आत्मास्वरूपकाप्रमाद हुआहै, तिसप्रमाद होनेकर आगे विश्व हुआ है,अरु मनभी कैसाईजो कदाचित्उदयनहींभया,अरुआत्मास्वरूप हैं सो उदय हुएकी नाईं भासताहै, मन अरु संसार सत्य भी नहीं, असत्य भी नहीं जो दूसरी वस्तु होवै तौ सत्असत् कहिये,आत्मा अद्वैत ज्योंका त्यों स्थित है, तिसका विवर्त्त मन होकार फुरा है, सोई मन कीट है, सोई मन ब्रह्मा है, बहुरि ब्रह्माने मनोराज्य कारकै स्थावर जंगम सृष्टि कल्पी हैं, सो न सत्य हैं, न असत्य है । हे रामजी ! सर्व प्रपंच मनने, कल्पा है,तिसीने नानाप्रकारके विचार रचे हैं, मन बुद्धि चित्त अहंकार जीव सब मनके नाम हैं, जब मन नष्ट हो जावै, तब न संसार है, न कोऊ विकार हैं, अरु जबलग मन दृश्यसाथ मिलकर कहै कि, मैं संसारका अंत लेउँ तो कदाचित् अंत न आवैगा, काहेते जो संसरनाहीं संसार हैं, संसरने संयुक्त संसारका अंत कहां आवै, अंत लेनेवाला-बनकर आगे फ़रिकारि देखता है तौ अंत कहांते आवै, जैसे कोऊ पुरुष दौड़ता जावे, अरु कहै; मैं अपनी परछाईंका अंत लेउँ जो कहां लए जाती है । हे रामजी ! जब्लग पुरुष चला जावै, तबलंग परछाईंको अंत नहीं आता, अरु जब ठहरि जावै, तब परछाईंका अंत हो जाता है, तैसे जबलग फुरणाहै, तबलग संसारका अंत नहीं आता, जब फुरण : नष्ट हो जावै, तब संसारकाभी अंत हो, आत्माही दृष्ट आवै, अरु संसारका अत्यंत अभाव हो जावै,अरु जो ऊरनेसंयुक्त देखेगा तौ संसार ही भासँगा । हे रामजी । जिस पदार्थको यह देखता है, सो पदार्थ पूर्व कोऊ नहीं, चित्तके फुरणेकार उदय होता है, जब चित्त फुरा कि, या पदार्थ है, तब आगे पदार्थ हुआ, अरु फुरणेते रहित होकर देखे तौ पदार्थ कोऊ नहीं भासता, केवल शांतपद हैं ॥ हे रामजी! यह जो नानाप्रकारकी कल्पना है, तिसते रहित निर्विकल्प ब्रह्मपदविषे अहंकारका त्याग कर स्थित होहु, अहंकार जो है, नामरूपदेह वर्णाश्रमविषे मायाकरि कल्पित, जब तिसते रहित होकार देवैगा, तब केवल सच्चिदानंद आत्मपदशेष रहेगा, जब तिसपद को अपना आप जानेगा, तब तूही सर्वात्मा होकार विचरैगा, दुःख तेरे ताई कोऊ नहीं रहेगा ॥ हे रामजी ।