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चूडालाप्राकट्यवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (११६५ ) घडशीतितमः सः ८६. चुडालाझाकट्यवर्णनम् । बसिछ उवाच ।। हे रामजी ! तब मदनिका नाम जो चुडाला है, तिसने विचार किया, बडा आश्चर्य हुआ, जो राजा आत्मपविषे प्राप्त भया ऐसे सिद्धि अझ ऐर्य दिखाये अरु क्रूर थाल भी दिखाये तो भी राजा शुभ अशुभविषे ज्योंका त्यों रहा ताते वडा कल्याण हुआ, जो राजाको शांति प्राप्त भई, अझ रागद्वेषते रहित भया, अब पूर्वला रूप चूडालाका है, सो दिखाडौं, अरु संपूर्ण वृत्तांत राजाको बृतावौं ऐसे विचार कार मदनिका शरीर चुडालारूप होकार झगट भई. भूषणों अरु वस्त्रोंकार तब सहित राजा देखिकारि महा आश्चर्यको प्राप्त भयो अझ ध्यानवि स्थित हुआ, अरु देखा कि, यह चुडाला कहाँते आई है, बहुरि पूछा, हे देवि ! तू कहते आई है, तेरे ताईं देखिकर मैं आश्चर्यको प्राप्त क्या हौं, कि ऐसी सी स्त्री चूडाला थी, अरु तू यहाँ किसनिमित्त आई है अरु कबझी आई है, । चुडालोवाच ॥ हे भगवन् ! मैं तेरी स्त्री चुडाला हौं, अझ तू मेरा स्वामी है ॥ हे राजन् । कुंभते आदि अरु यह चुडाला शरीरपर्यंत सर्वं चरित्र तेरे जगावनेके निमित्त मैही किये हैं, तू ध्यानविपे स्थित होकार देव, कि यह चरित्र किल्ले किये हैं, अरु मैं अब पूर्वका शरीर चुडालाका धारा है । हे रामजी ! जब ऐसे चुडालाने कहा, तव राजा ध्यानविषे स्थित होकर देखने लगा, एक झुडूपर्यंत सर्वं वृत्तांत देखि लिया, तिसते उपरांत राजाने आश्चर्यको प्राप्त होरि नेत्र खोले, अरु राणीके गलेसाथ कंठ लगायकार मिला अरू दोनों हर्षको प्राप्त भये, जो सहस्र वर्षपर्यंत शेष नाग इस सुरको वर्णन करै तौ भी न कहि सकेगा; ऐसे सत्ता समान विधे स्थित हुये अश शांतिको प्राप्त भए, जिसविरे क्षोभकदाचित नहीं राजा अरू राणी युगल कंठ लगाय मिलेथे, तिसरे अंगोवि उष्णता उपजी, तब शनैः शनैः करि खोला, हर्पमान होकार राजाके रोमावलि